बदलते रिश्ते
बहुत मान था मुझे आपके ऊपर
मैने आपको क्या क्या बना रखा था
रोती थी,परेशान होती थी
तो अपनी आंखों में आपकी मूरत बसा कर
घंटों आपसे सबकी शिकायत करती थी.
तकिये को आप बना कर
अपने सारे आँसू उड़ेल देती थी.
तकिया जब ज्यादा गीला हो जाता
तो समझती कि आपका कुरता गीला हो गया
उसे सुखाती,सहलाती.
फिर चैन से लिपट कर सो जाती.
आपके इतना अनदेखा करने के बावज़ूद
एक अलग छवि दिल में बसा रखी थी
अगर आपके लिए कोई कुछ कहे
तो दिल रोता था,लड़ पडती सबसे
लेकिन अब ,जब मैं तुमसे बहुत दूर
जा ही रही थी,तब तो कम से कम
मुझे लड़िया देते,
चलते समय का
आप ही के सामने
आपकी प्रियतमा का दिया तोहफा
मैं नही बर्दास्त कर पा रही हूँ
सब खत्म हो गया
तुम्हें आँसूओं के सहारे
अपनी नज़रों से गिरा रही हूँ
मैने भी अपने प्रिये का सहारा लिया
मैं उसके कांधे पर सर रखकर रोई,
ताकि जिन् आंसुओं के जरिए
तुम मेरी नजरों से गिरो
तो कोई चोट न लगे.
मेरे सारे आँसू मेरे प्रिय के कांधे से लुडक कर
सीधे उनके दिल तक पहुंचे,
अपनी तरफ से तुम्हें धूल में नही मिलने दिया
क्योंकि अब जब मेरी नजरों से तुम गिर गए
तब भी आपका अपमान
बर्दास्त नही कर पाऊँगी.....