About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Tuesday, November 22, 2011

स्टाम्प

मेरी क्या हैसियत है इस घर में,
      हर वक्त की दुत्कार 
हर वक्त की कोंच कौंच 
       कभी इसका काम 
कभी उसका काम 
     फिर भी मैं कुछ भी नहीं 
मेरी जिन्दगी,एक स्टाम्प बन कर 
       रह गई है
खाली एक स्टाम्प 
      जिसका जो दिल चाहे 
मुझ पर स्टाम्प लगा दे 
     ये मेरी बीबी है स्टाम्प 
ये मेरी माँ है स्टाम्प 
    ये मेरी बहन  है स्टाम्प 
भाभी,बेटी ,बहु --------
      स्टाम्प-----स्टाम्प---- स्टाम्प 
और मेरी नजर में 
   मैं सिर्फ  एक 
रबड़ के नीचे लिखे एक 
  पेन्सिल के अक्षर की तरह हूँ 
अगर सही लगे तो ठीक 
   वरना रबड़ तो है ही 
              मिटा दो.......

Monday, November 21, 2011

अजनबी

दी,
    ऐसा भी होता है क्या,दी.
कैसा?
    कि कोई दो जन जितना भी
अधिक समय साथ गुजारें
          एक हवा में साँस लें
उतना ही ज्यादा
   उतना ही ज्यादा क्या?
उतना ही ज्यादा
      एक दूसरे से अजनबी हो रहें
क्या तुम सचमुच
    ऐसा महसूस करती हो छुटकी
हैं,हाँ शायद
    या शायद नहीं,
शायद पता नहीं .....

मकान

मेरे मकान का एक कमरा
    जिसमे बड़ा गोल सोफा,पेंटिंग्स,किताबें
अलमारी,गुलदस्ते,बुत,और भी ना जाने क्या क्या
    देख्नते ही कोई भव्य रूम सा लगता था,
आज भी कोई धूल झाड़कर देखे तो कहेगा जरुर,
एक दिन यह बहुत ही खूबसूरत रहा होगा
     पर सालों की आर्थिक तंगी ने
कठिनाइयों से भरी जिंदगी ने
हमारे मन के साथ साथ
सारे सामान में भी धूल जमा दी.
      परिवार का हर सदस्य
एक दूसरे से कटा कटा,खिंचा खिचा सा है.
 घर की हवा तक खींची खिची सी है
      उस हवा में भी गंध है
आपसी उब की,कडवाहट की
   ऊब,घुटन,आक्रोश,तनाव,तंगहाली
दम घुटा देने वाली मनहूसियत
   जो श्मशान में होती है
वही इस धूलधूसरित आलिशान रहे
     इस मकान में फेली है
इसको घर नहीं कहा जा सकता
ये तो एक मकान ही है.....

Tuesday, November 1, 2011

नजर

इस डर से कि कहीं किसी की
         नजर ना लग जाए
मैंअपनी खुशी को
       अंदर कोने कहीं सहेजती रही
मुझे पता ही नहीं चला
    वो कब मुझसे कोसों दूर चली गई
और मैं गम की पनाह में
       जीती रही
इसी उम्मीद में कि
          कहीं किसी कोने में मैने
अपनी खुशियों को सहेज
     कर रक्खा हुआ है.