About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Wednesday, August 31, 2011

देवी

किसी पंडित के कहने पर
        वो रोज फूल तोडकर लाता है
पर, 
    उन फूलों को मंदिर में चड़ाने की जगह 
वो मुझ पर बरसा जाता है,
      सुबह शाम मंदिर जाने को कहा है
इसलिए भोर होते ही और
       शाम ढलते ही 
वो मेरी गली आ जाता है,
      मै  कैसे प्यार करूं जोगी
तू तो मुझे ,
      देवी बनाये जाता है..
 देवी बनाये जाता है..

२८.३.२००१

कौन हूँ मैं

मैं एक लड़की हूँ 

       अभी बिटिया ही मेरी पहचान है 
मैंने राजसी घराने में  जनम लिया है 
        मुझे राजघराने की तरह रहना है 
मुझे मिटटी के खिलोने से नहीं खेलना चाहिए 
        मुझे बाहर गलियों में सखियों के साए
आँख - मिचोली , खो खो नहीं खेलना चाहिए 
         मुझे अपने कमरे में गुड्डे गुडिया से खेलना है 
मुझे दसियों से ज्यादा बात नहीं करनी है ! 
         अब मैं युवा हूँ, 
         शादी शुदा हूँ  
मुझे मेरे पति की सारी अच्छाइयों और 
         बुराइयों के साथ अपनाना है 
बिना कोई प्रश्न किए अभी मुझे सबकी बातें सुन्नी हैं 
         क्योंकि में दूसरे घर (ससुराल) में हूँ 
अब मेरी पहचान मेरे बच्चों की माँ के रूप में हैं 
         अभी मुझे सिर्फ माँ का फ़र्ज़ निभाना है 
अब मैं अधेड हूँ ,
                     मेरे बच्चों की शादी हो चुकी हैं 
इसलिए मुझे नाती पोते खिलाने  हैं 
          मेरा बूढ़ा पति मेरे साथ है 
मुझे उसकी सेवा में भी लीन रहना है 
          और अब 
अब मैं एक लाश हूँ 
        जिसके जाने से किसी को ---------
पर मेरा खाली एक सवाल है 
      इतने रूपों में मेरा वजूद कहाँ है 
बिटिया , बीवी , बहु , बेहेन , दादी , नानी 
     मैं सब कुछ हूँ लेकिन 
मैं,मैं कहाँ हूँ , ये सब तो रिश्ते हैं 
    इन रिश्तों में मैं कहाँ हूँ 
              मैं कौन हूँ                                                
१/८/११

Tuesday, August 30, 2011

अधूरे सपने

सबने कहा हम तेरे साथ हैं
    लेकिन जब मैंने आखिरी साँस ली 
कोई मेरे साथ नहीं था,
 मैं थी और थे मेरे अधूरे सपने ,
जिन्हें मेने दिन रात 
     इस इंतज़ार में संजोया था कि
कभी तो वो मेरे सपने पूरे करेगा,
       अब ना वो सपने हैं और ना वो 
जो शायद खुद  भी मेरे सपनों को 
      पूरा ना कर पाने के कारण
दिन रात अंदर ही अंदर टूट रहा था,
       कोई नही है मेरे ......
१५/८/११

Monday, August 29, 2011

हकीकत

ना जाने क्यों हर समय खोई खोई रहती हूँ 
              अपने ही बुने सपनों को जीने के लिए 
हर समय सोई सोई रहती हूँ ,
           हकीकत में जब सब अंजाना सा लगता हैं
तब अपने ही लिए रोई -रोई फिरती हूँ 
          ना जाने क्यों 
हकीकत में जी नहीं पाती,
      इसी जीने के लिए ,शायद ,
हर समय खोई-खोई रहती हूँ..१२/४/२००६ 

सूरत

ये कैसी उलझन है
   दिल में अजीब सी हलचल रहती है 
किसी से उसका नाम भी सुन लूँ, तो ,
         दिल कि धडकन बड  जाती है,
दिल इतनी जोर से धडकता है कि ,
       कोई और आवाज़ कानो तक पहुँचती ही नहीं .
बस,अजीब सी हालत रहती है 
   ना नींद आती है ,न भूख लगती है,
इक बेचेनी सी  हर वक्त लगी रहती है 
        जिधर भी देखूं उसी की सूरत दिखाई देती है,
अगर नही दिखती तो आईने में देख लेती हूँ 
           औरशरमा  जाती हूँ...
 ६/२/०३     

सपना

रात को इक सपना देखा 
       जो चाहती थी सब अपना देखा,
सुबह आँख खुली तो कुछ ना था 
        लेकिन खुश हूँ कि
सपने में ही सही 
        सब अपना था..

वोह तीसरा आदमी


माँ कहती हैं कि तेरे पति की शक्ल शिवजी से मिलती है .
उनके पास एक पुराना केलेंडर है शिव परिवार का,
हाँ,शायद वो सही कह रहीं है,
तभी तो इनके माथे पे तीसरी आँख है
      लेकिन मेरे विचार में अगर इनको किसी देवता से मिलाना हो तो
मैं  राम से मिलाऊँगी ,क्योंकि
       राम सीता को बहुत प्यार करते थे 
लेकिन वन में अपने साथ लेकर नहीं जाना चाहते थे 
      जब सारे कष्ट उठाकर वन से वापिस आये 
तो इक बाहर के आदमी (धोबी) के कारण 
      उन्हें घर से निकाल दिया 
वो वन में सोई तो राम जमी पर सोए
            और आखिर में भी सीता जी को धरती माँ की
गोद में समाते हुए, देखते रहे,
प्यार तो बहुत किया ,लेकिन ,ऐसा ,
कि ना खुद खुश रहे ,और ना सीताजी
            इसलिए पति पत्नी के बीच कभी भी किसी तीसरे
 (धोबी)को नहीं लाना चाहिए.........
                     OCT.2010


माँ कहती हैं कि तेरे पति की शक्ल शिवजी से मिलती है .
उनके पास एक पुराना केलेंडर है शिव परिवार का,
हाँ,शायद वो सही कह रहीं है,
तभी तो इनके माथे पे तीसरी आँख है
      लेकिन मेरे विचार में अगर इनको किसी देवता से मिलाना हो तो
में राम से मिलाऊँगी ,क्योंकि
       राम सीता को बहुत प्यार करते थे 
लेकिन वन में अपने साथ लेकर नहीं जाना चाहते थे 
      जब सारे कष्ट उठाकर वन से वापिस आये 
तो इक बाहर के आदमी (धोबी) के कारण 
      उन्हें घर से निकाल दिया 
वो वन में सोई तो राम जमी पर सोए
            और आखिर में भी सीता जी  धरती माँ की
गोद में समाते हुए देखते रहे,
प्यार तो बहुत किया ,लेकिन ,ऐसा ,
कि ना खुद खुश रहे ,और ना सीताजी
            इसलिए पति पत्नी के बीच कभी भी किसी तीसरे
 (धोबी)को नहीं लाना चाहिए.........
                     OCT.2010

माँ



श्री कृष्ण जन्माष्टमी उसको मेरे अंदर से आना था ,पर वह मुझे ये खुशी न दे सका ,,
                     मैं भगवन के आगे हाथ फेलाये रही 
                                              पर उसने मुझे खाली हाथ  छोड़ दिया,
                       मै ऊपर  झोली  फेलाये ताकती रही ,          
                   लेकिन ,
                            मेरी सूनी  गोद में, उसने ,मेरे आंसुओं  के अलावा कुछ  न दिया ,
   मेरी गोद  सुकडती गई
                        मेरा चेहरा मुझे चिडाने  लगा ,तभी,
एक  दिन एक  बालक  आया ,और सबके  बीच बोला  
                 ये ही तो मेरी माँ ,है .
इसने  मुझे अपने आंसू के रूप में 
          नो  महीने नहीं बरसों तक मुझे पाला  है. 
इसके आगे  कोई कुछ नहीं देख पाया 
देखा तो सिर्फ देवताओं ने ,
                देवी विंध्यवासिनी ने ,अपनी बूडी काया को  
चोले  की तरह उतर फेंका ,
        और पहन  लिया  अपना  युवाओं वाला  वस्त्र 
 जिसमे अब कृष्ण  अपनी छोटी -छोटी उँगलियाँ घुमा रहे हैं. 
                 वो अपनी छोटी छोटी  हथेलियों से माँ का चेहरा पकड़ 
     चूम  रहे हैं.
उस सुनी गोद में अब ,आंसुओं का गीलापन नहीं 
       उसके कृष्णा  की सू सू है...............


                  जन्माष्टमी की एक शाम.     २००८ 

कोई मेरा अपना

इक इक साँस झनझना जाती थी
       इक इक तार रुला जाता था,
जब अपनों ने ही बिसार दिया 
          तो बेगानों से क्या पड़ता था
अब तो अपने-बेगाने सब एक हुए 
       क्योंकि हमे रोये हुए भी जमाने हुए 
अब तो सांसे भी उकता गई हैं,
 हमसे
           हर साँस पूछती है 
क्या अबकि आखिरी हूँ मैं ,
     इस जिंदा लाश को 
सांसे भी ढो ना पा रहीं है अब 
         हर साँस को इंतज़ार है 
अपने आखिरी होने का 
          और हमे इंतज़ार है   
उनके ,अपने होने का......


                             AUG.10

इंतज़ार

अपने हाथों से बहुत सालों
      ढोती रही अपना ही जनाज़ा
सिर्फ इस इंतज़ार में, कि,
       कभी तो वो अपने कांधे पे
लेके जायेंगे जनाज़ा मेरा....

अजब

कैसी अजब दुनिया बनाइ है भगवन ,
      पत्थर को पूजते हैं और
जिन्दे इंसान को
जिसने पत्थर को तुम्हारे रूप में
गड दिया,
खुदा बना दिया
       लोग उसको चट्टान का बना कह कर
उसे तोड़ते रहते हैं,चोट पहुंचाते रहते हैं

तलाश

मेरे खुद अपने अंदर ही तो प्यार छलक
       रहा था,फिर
फिर मैं क्यों और किस प्यार को
बाहर तलाश कर रही हूँ
           क्या बाहेर प्यार मिल पायेगा
क्या वो मेरे जितना सच्चा और पवित्र होगा...

अकेलापन

अंधेरी राह में,अकेले चलते हुए
       लगता है कोई पीछे आ रहा है
दिल जोर से धड़क उठता है,
      पैर में बेडी सी पड जाती है
भागना चाहती हूँ पर चल भी नहीं पा रही हूँ
           ये कौन मेरी रूह तक पहुंचता है
क्या तुम हो
     क्या तुम ऐसे ही साथ निभाओगे ,
साथ निभाना मेरे साथिया

MARCH 2007

साया

कभी खुद से ही सवाल पूछता है दिल ,
       कि केसा जीवन साथी चाहा था तुमने
यही जो है तुम्हारे साथ
          या कोई सपनों का सौदागर
खुद को क्या जवाब दूँ
        समझ नही पाती ,क्योंकि
सौदागर तो ये भी है !
           कभी सपने दीखाता है,कभी तोड़ता है.
खुद से झूठ भी नही बोल सकती
            कि खुश हूँ ,या खुश नही हूँ ,
दोनो ही बातें झूठी होंगी ,
     लेकिन जीवन साथी ऐसा चाहती हूँ
जो हमेशा मेरे साथ रहे /
चाहे मेरे डर कि तरह ही रहे
           जो हमेशा मेरे दिल में रहता है.....
कैसी अजीब सी हालत है,
    दिल रोने के लिए उसी का कान्धा
चाहता है 
        जो उन आंसुओं की वजह है....
                 
 अगस्त 11

आखिर किसे

कहते हैं चुप रहने से तकलीफ और बड जाती है
लेकिन जब कोई सुनने वाला ही ना हो ,तो क्या 
           सचमुच मान लेना चाहिए कि 
दीवारों के भी कान होते  हैं....  
jun 2005

बोझ

बचपन से ही हमें बताया गया है कि इस धरती पर जिसका भी जनम हुआ है वह किसी न किसिं मकसद से हुआ है,
बहुत समय से सोच सोच कर प्रेषण थी कि हमारा जनम किस कार्य के लिए हुआ है,
मुझे बिलकुल भी समझ में नहीं आ रहा था,लेकिन अब लगता है कि भगवान दिखाना चाहता है कि जींदगी बिना 
उत्साह और उमंग के बेमायने केसे जियें,या केसे जी सकते हैं यही दिखाने के लिए हमारा जन्म हुआ है.!
इसी बेमायनी जिंदगी के लिए हमें प्रथ्वी पर भेजा गया है,बिना खुशी के खुशी-खुशी जिंदगी जी कर दिखाओ!
ये जिंदगी है या श्राप?
 पता नहीं,
पर पैदा हुए है और अपनी जिंदगी के साल बिता रहे हैं, अभी कितने साल का वनबास और है ये बताने वाला कोई नहीं है!
बस यही प्रार्थना है कि अब इस श्रापित जीवन से भगवांन जल्दी ही छुटकारा दिला दे ......
                9/10/99

बेखुदी

 मन चाह रहा था कि कुछ लिखूं ,
         लिखा ,बहुत कुछ लिखा ,
पर ये क्या,हमारी बेखुदी का आलम
जब होश आया ,तो देखा
          हर जगह सिर्फ तुहारा ही 
और सिर्फ तुम्हारा ही जिक्र था,और कुछ नहीं.....

बेकसी

 ये कैसा खुमार चडा है मुझको 
की हर जगह तू ही नज़र आता है
दरो-दीवार की तो कहें क्या 
अपनी सूरत में भी 
नज़र आता है तू मुझको
ये आईना है की तू सामने खड़ा है, 
ये भी समझ नहीं आता मुझको
घर बाहर,गली-चोराहे पर  
बस तू ही नज़र आता मुझको
तू ही नज़र आता मुझको........ 


21/12/10

डर

प्यार के बाद डर नहीं ,विश्वास आना चाहिए
क्योकि हमें जो चाहिए वह हमको मिल गया ,
लेकिन डर का मतलब है कि हमने इतना ज्यादा
किसी को प्यार कर लिया कि अब सारा विश्वास उस डर के
पीछे छिप जायेगा .
चारो तरफ से वो डर इतना छा जायेगा कि वश्वास कहीं हमें
छोटा लगने लगेगा .
इसलिए प्यार को प्यार ही रहने दो ,बिना किसी कारण
उसे अपने ऊपर हावी न होने दो ,
इंसान को इंसा ही बने रहने दो ,देवता न बनाओ...

2007

तोहफा

कहते है कि गिफ्ट की कीमत 
           गिफ्ट देने वाला ही जानता है,                                                     
लेकिन ,उन आंसुओं की कीमत कौन जानता है,
                    जो आँखों से बह जाते हैं 
न आंसू देने वाला 
              क्योकि वो तो आंसू दे के गया है 
और न रोने वाला,जो उन आंसुओ को 
         यूँ ही बहाए जा रहा है,
और वो भी उसके लिए 
         जिसके लिए इनकी कोई कीमत नहीं ....
 इसकी कीमत कौन ----               


                         6/8/2007



साथी

ये तेरा साथ है या 
                        फिर तकिया मेरा,
ये तेरा हाथ मेरे हाथ में है या, फिर
              अपना ही हाथ फिर थाम लिया मेने
घना अँधियारा है परछाई तो नहीं हो सकती 
                  क्या ये मेरी शिद्दत है ,
जो मेरे साथ साथ चलती है.
सदियाँ बीत गई चलते चलते  
      ये तू है या साया तेरा,
ये तू है की मैं हूँ नहीं मालूम
         पर तेरे साथ मैं और मेरे साथ तू 
चलता रहा - चलता रहा
          ये तेरा साथ है ---
                                    22/5/06

Saturday, August 27, 2011

आखरी साँस

बस आखिरी बार तुझे देखने के लिए
इक साँस खुदा से उधार   ले रखी है,
बदन को लाश बनाने में ,
           बस तेरे दर्शनों का इंतज़ार है
तू नहीं आएगा तो
                 जल जायेगा बदन धू धू कर  
अरमा भी जल मरेगे,  इच्छा भी   खाक हो जायेगी,
               और जो राख हो जाउंगी ,
उसे भी हवाएं ले उड़ेंगी
इससे पहले की खाक हो जाऊँ मै ,
तुझे देखने की  इच्छा है,
        उस एक उधार की साँस की खातिर
एक बार तो मिलने आ जाओ ..
                       5/8/11