About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Sunday, September 30, 2012

नया सवेरा

सूर्य की रौशनी 
            हर तरफ उजाला करती है
फिर मेरे दिल के भीतर ही 
               क्यों अँधियारा छाया है ,,,,,,,
क्या मेरे लिये भी सूर्य कभी 
                      अपने अंदर छुपा के लाएगा सवेरा;
सवेरा !
        जो मेरे अंदर से 
अंधियारे को भगा देगा ,,,,
           वो सवेरा जो सिर्फ मेरे लिये होगा 
एक नया सवेरा ,,मेरा सवेरा 
       जो आएगा तो सिर्फ  
मेरे अधरों पे मुस्कान बिखेरने के लिए 
                जो होगी मेरी मुस्काती सुबह.......................

डर

अपनी खुशियों को जाहिर करने से डर लगता है
                  क्योंकि हर इंसा  मुझे नज़र लगाता
सा लगता है,,
लग ना जाए इन खुशियों को ग्रहण
                  इसलिए
कभी -कभी तो खुद ही की
                 नज़र का डर लगता है,,,,,
    इतने दुःख सह चुकी हूँ
हर शख्श से धोखा  खा चुकी हूँ
             अब तो हाथ ऊपर उठाकर देखने में भी
भगवान धोखा ना दे दे 
           ये डर लगता है ...............
गमों में इतना घिर चुकी हूँ
                   आशा की किरण से भी डर लगता है
हे भगवान ,,
               जो मुस्कान इतने सालों में आई है
उसे तेरी मेरी
           नज़र ना लगने देना
कहीं तुझसे भी पूरा भरोसा ना उठ जाए
      इस अंजाम से भी डर लगता है.....................

Friday, September 28, 2012

किसी के साथ अपनी जिन्दगी के सबसे 
                             सुनहरे पल 
हंसकर ,रोकर .सुखी रहकर दुखी रहकर 
                           जैसे भी तुमने गुजारे 
तुमने उस अजनबी को 
                अपना सर्वस्व दे दिया 
१ उम्र बिता दी उसके साथ 
                              जब वही अजनबी 
जो आपका सब कुछ हो चूका है 
                आपको बोले की तुमने किया ही क्या है 
मेरे लिए 
        तब आपका पूरा अस्तित्व 
एक पल में 
     Image result for broken images for mirror     बिखर जाता है,टूटे हुए कांच की तरह ......मिष्टी 29\9\12








































































































































































































































































हम

मेरे हाथ में तेरा हाथ है 
              लेकिन स्पर्श की गर्माहट नही है,,
मेरी आँखों में तेरी आँखे हैं 
             लेकिन दिखता (ध्यान में ) तू नही है,,,,,,,,,
मेरे पास में तू है 
            लेकिन वो  एहसास नही है 
मेरे लिये तू ही सर्वस्व है 
             लेकिन मेरा दिल अब मेरा नही है 
तेरे बदलते जिन्दगी के मायने ने 
हमें -हम से ,,
             तू और मैं बना दिया ........................
     OCT..11...............

तुम आ जाओ ना

जैसे ही मेरी आँख से आँसू निकला 
            तुमने अपनी हथेली आगे कर दी 
मैं तो खाली मुस्कुरा के रह गई 
                 पर तुम मेरे सारे आँसू 
अपनी आँखों में 
              भर के चली गईं 
तुम फिर कब आओगी
             आ जाओ ना........................
10-10-11..........

Thursday, September 27, 2012

अनजानी सी मैं

ये कैसी स्थिति हो गई है  मेरी 
                    जब हंसती हूँ तो 
आँसू निकल पड़ते हैं और 
                    जब रोती हूँ तो एक मुस्कान 
मेरे अधरों पर खिल उठती है,,,,,,,,,,
          क्या हूँ मैं
खुद  ही से अनजान 
          एक अनजानी सी मैं..........................

Tuesday, September 25, 2012


ठहराव

कौन है,,जो मेरे ठहरे हुए व्यक्तित्व को झंकार रहा है,,
                      कौन है जो ठहरे हुए पानी में कंकड़ी मार कर
मेरा अस्तित्व हिला रहा है..
       कौन है जो मेरे ठहरे हुए जीवन को
मनमौजी बनाने को विवश कर रहा है
                 कौन है,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या वो तुम हो...........................
             अगर तुम हो तो
चले जाओ................
             मुझे ऐसे ही रहने दो
मुझे इसकी आदत हो चुकी है.................
         

Sunday, September 23, 2012

दर्द

मैं ,, 
  मैं एक दर्द हूँ ,,दर्द की  आवाज़ नही होती 
                  मैं क्यों कहूँ कि तुम बदल गए 
क्योंकि,,
            जो मैं कल थी  वो खुद ही मैं
आज वैसी नही हूँ....
           कल मैं हंगामा थी ,, आज दर्द की पनाह में 
गूंगी हो चुकी हूँ|
         ये जिन्दगी मेरे लिए  ख्वाब जैसी है 
जिसमे मैं नही हूँ !
              क्योंकि किसी ने मुझे आँखों में बसाया ही नही ,,
अब पूछते हो,, मैं  कौन हूँ 
             मैं एक ऐसा सवाल हूँ जिसका कोई 
जवाब ही नही है,,,,,,,,,,,,
               ये सूरज जरूर मुस्का के तसल्ली देता है
कहता है ------------------ 
       जलता हूँ मैं भी ,,अकेली तू ही नही है.........................
                                 मैं एक नाम हूँ 
सिर्फ एक नाम------------मिष्टी......................

भटकाव

ना जाने कितने सालों से ,एक ही रास्ते पे 
          चलती जा रही थी 
कई बार लोगों ने भटकाने की  कोशिश की
              पर मैं उसी रास्ते पर अडिगता से दम भर कर चलती रही 
कुछ नाराज़ भी हो गए,,तो कुछ खुश;
और मैं-------------------अपने में ही खोई रही 
कि  अचानक ,,एक हवा का झोंका 
     आया,, 
नही पता कहाँ चल दी,,
  उस हवा के झोंके की खुशबु के साथ,,
                     खोई -खोई चलती गई ,,
मुझे मालूम था कि बहक रही हूँ      
           मेरा खुदा मुझे गुमराह कर रहा था या 
जिन्दगी जो पतझर के समान हो गई थी 
                       उसमे फूल खिला रहा था 
नही जानती !!!!
          पर पांव थिरक रहे थे ,मचल रहे थे 
उस खुशबु के पीछे जाने को 
           और मैं चलते -२ रुक गई  
कहाँ जाऊँ,नही समझ पा रही 
वो खुशबु मुझे खींचती है अपनी और 
              उस खुशबु को नही छोड़ पा रही हूँ 
और ना ही कदमों को अपनी गली से बाहर 
                    जाने देना चाहती हूँ,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई मुझे इस भव -सागर से बाहर निकालेगा 
            आ जाओ कोई तो -------------------------
कोई तो निकालो .......................  
नव
     मुझे सामने का समन्दर बहुत प्यारा लग रहा है
मैं जब इसमें खड़ी होती हूँ 
        बड़ा सुकून मिलता है |
और जो सुकून मुझे मिलता है
      वो मैं तुम्हें भी देती हूँ ,,फिर क्यों ?
उस समन्दर की गहराई से डर जाती हूँ !!!!!!!
          क्यों आगे ,और आगे नही जा पाती हूँ Happy Hug Day| Happy Hug Day Wishes | Happy Hug Day Greetings
पता है नव ,क्यों ?
         क्योंकि उस पार आप नही हैं...
इसलिए नव 
           मुझे इसी किनारे पर 
इतनी कसकर अपनी आगोश में ले लो 
       कि मैं समन्दर के सुकून को भूलकर 
सिर्फ और सिर्फ तुम में ही खो जाऊँ.......................
aug........6..............
       

जुदाई

जुदाई का अर्थ सिर्फ 
         शरीर  का बिछुडना ही नही होता,,
जुदाई मानसिक भी होती है  !
       यही वजह है कि
वह आदमी  को रह रहकर टीसती है     .................