तुम कहाँ हो
तुम्हारे बगैर तो मेरा घर ही विरान हो गया है,,
मेरी खनकती हुई हंसी
उदास हो गई है
मेरी सूर्य सी चमकती सिंदूरी बिंदिया
भी फीकी पड़ गई है
फ़ूल पत्ते ,चाँद सूरज सब
सब मुरझा गए हैं ,मौन हो गए हैं
एक अकेलापन छा गया है मुझ में,
तुझे देखने की
झूठी उम्मीद बंधाती हूँ
तेरे मनाने की आदत
तेरा मुझे अंदर ही अंदर चाहना
मेरे दिल के वीराने में
हलचल(हाहाकार) मचाए है
तेरे बगैर अधूरा सा महसूस कर रही हूँ खुद को
अब आजा,और मुझे पूर्ण कर जा ................