सुनो,,
आज तुम बहुत खुश हो ना,क्योंकि तुम्हे पता चल गया है कि
मैं तुम्हारी कोख में हूँ
बाबा को भी बता दिया न तुमने और दादी को भी
बहुत खुश हो ना तुम..
लेकिन ये क्या?,अभी परसों ही तो Dr.आंटी के पास गए थे न
फिर?
मुझे आने में तो समय है ना माँ
फिर क्यों ये लोग तुम्हे लेके जा रहे हैं..
तुम आज इतनी उदास क्यों हो,,क्यों इतनी डरी सहमी ,
नम आँखे लिए मुझपर हाथ फेर रही हो?
........ओह्ह,शायद घर में पता चल गया,,कि तुम्हारी कोख में
मैं पल रही हूँ,इस घर का वारिस नही,,बेटा नही,एक बेटी
उफ्फ्फ्फ़ तेरी अजन्मी.................
तू रो मत माँ,मैं तुझसे खफा नही हूँ,
..समाज की कुरीतियों और तुम्हारी विवशता ने,,छीन लिया मुझसे मेरे पैदा होने का हक ,,
छीन लिए वो सपने,जो मैं तेरी गोद में देखती.
मैं नही जन्मी तुम्हारे घर,,
लेकिन तुम्हारे मन के किसी कोने में
जन्मी है ये अजन्मी कन्या,,,,,
जिसकी किलकारी सिर्फ तुम्हे सुनाइ पड़ती है,,
जो खेलती है,माँ तेरे आंगन में
और जब गिर जाती हूँ मिटटी में लथपथ,,तुम भागकर मुझे उठा लेती हो ,,
और गोद में लेकर घंटो मुझे निहारती हो,
चूमती हो मेरे माथेको,मेरे गालों को
तबतक,
जबतक तुम्हे बाबा आकर नही ले आते तुम्हारे कल्पना लोक से बाहर,,
तुम्हारा यही प्यार बांधे है माँ मुझे तुमसे
लेकिन माँ,अब नही जन्मूँगी मैं,,
ना तुम्हारी कोख से,,
न ही किसी और कोख से,,
रहूंगी,,यूँ ही अजन्मी,,ना जाने कितने जन्मो तक..ना जाने कितने जन्मो तक......मिष्टी
आज तुम बहुत खुश हो ना,क्योंकि तुम्हे पता चल गया है कि
मैं तुम्हारी कोख में हूँ
बाबा को भी बता दिया न तुमने और दादी को भी
बहुत खुश हो ना तुम..
लेकिन ये क्या?,अभी परसों ही तो Dr.आंटी के पास गए थे न
फिर?
मुझे आने में तो समय है ना माँ
फिर क्यों ये लोग तुम्हे लेके जा रहे हैं..
तुम आज इतनी उदास क्यों हो,,क्यों इतनी डरी सहमी ,
नम आँखे लिए मुझपर हाथ फेर रही हो?
........ओह्ह,शायद घर में पता चल गया,,कि तुम्हारी कोख में
मैं पल रही हूँ,इस घर का वारिस नही,,बेटा नही,एक बेटी
उफ्फ्फ्फ़ तेरी अजन्मी.................
तू रो मत माँ,मैं तुझसे खफा नही हूँ,
..समाज की कुरीतियों और तुम्हारी विवशता ने,,छीन लिया मुझसे मेरे पैदा होने का हक ,,
छीन लिए वो सपने,जो मैं तेरी गोद में देखती.
मैं नही जन्मी तुम्हारे घर,,
लेकिन तुम्हारे मन के किसी कोने में
जन्मी है ये अजन्मी कन्या,,,,,
जिसकी किलकारी सिर्फ तुम्हे सुनाइ पड़ती है,,
जो खेलती है,माँ तेरे आंगन में
और जब गिर जाती हूँ मिटटी में लथपथ,,तुम भागकर मुझे उठा लेती हो ,,
और गोद में लेकर घंटो मुझे निहारती हो,
चूमती हो मेरे माथेको,मेरे गालों को
तबतक,
जबतक तुम्हे बाबा आकर नही ले आते तुम्हारे कल्पना लोक से बाहर,,
तुम्हारा यही प्यार बांधे है माँ मुझे तुमसे
लेकिन माँ,अब नही जन्मूँगी मैं,,
ना तुम्हारी कोख से,,
न ही किसी और कोख से,,
रहूंगी,,यूँ ही अजन्मी,,ना जाने कितने जन्मो तक..ना जाने कितने जन्मो तक......मिष्टी
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