About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Tuesday, January 29, 2013

क्यों रे कान्हा 
     तुझे भी मैं इतनी बुरी लगती हूँ  
कि तुम भी मुझे अपने पास 
           नही बुलाना चाहते ,,
बुला लो ना कान्हा 
          अब बर्दास्त नही होता।।
29-1-13.............

क्या करूँ

ख्वाब मरने नही देते
           हकीकत जीने नही देती  
क्या करूँ,,कुछ तो बता- ए - जिन्दगी ................

सपने

सपने आँखे ही क्यों देखती हैं 
               शायद इसलिए 
कि जब आपके सपनों का 
           टूटने का समय आए ..
तो वो 
      आंसू के रूप में गिरें 
और मिटटी में मिलजाए 
          जहाँ उनका 
नामोनिशान तक 
               बाकि ना रहे   ..................26...12.....12............

धोखा

तुम्हे भूलने की सारी कौशिशें 
          नाकाम रही
तुमसे नफरत करने के बावजूद 
                       तुम्हे नही भुला पाती,,
क्योंकि मैं तुम नही हो पाती।
                  नही भूल पाती की जब 
पल-पल मर रही थी 
        तुमने उस समय वो पल 
मेरी जिन्दगी के यादगार पल बना दिए थे।
             जिन्हें मैं आज भी जीती हूँ,,
लेकिन मैं कोई देवता नही ,,
          जो तुम्हारे धोखे को भूल जाऊ 
क्योंकि तुमने मुझे पर तो दिए,लेकिन जैसे ही मैं उडी 
                 तुमने शिकारी भेज दिया 
मेरे पर कतर दिए गए,,
        तुमसे दूर होकर भी तुमसे 
दूरी तो नही रख पाती 
              क्योंकि पलभर का ही सही 
वो सुख तो मुझे सिर्फ तुम्ही ने दिया था।।
                       लेकिन धोखा भी तुम्ही ने------
याद तो आज भी आते हो तुम,,
लेकिन जब भी याद आते हो,
             एक आह के साथ।।।।

शर्त

मेरे और भगवान के बीच
         शर्त लगी है,,
वो कहते हैं की तू कब तक
      कब तक खुश रहकर दिखाएगी ..
कब तक सपनो को हकीकत समझ कर जिएगी                                    शर्त
           और मैं कहती हूँ,,जब तक सपने मेरे साथ रहेंगे,,
मैं एसे  ही जियूंगी,,शर्त पक्की ...............
         टूट रहे हैं धीरे -2 सपने
साथ ही टूट रही हूँ मैं भी
        लेकिन कुछ सपने अभी भी
बाकि हैं,,
           जो रखे हैं जिंदा
इस टूटी-बिखरी मिष्टी को
      शर्त जितवाने की चाह में
कहीं न कहीं किसी ना किसी रूप में
         मिल जाते हैं सपने मेरे ...................................12-12-12..........