इस डर से कि कहीं किसी की
नजर ना लग जाए
मैंअपनी खुशी को
अंदर कोने कहीं सहेजती रही
मुझे पता ही नहीं चला
वो कब मुझसे कोसों दूर चली गई
और मैं गम की पनाह में
जीती रही
इसी उम्मीद में कि
कहीं किसी कोने में मैने
अपनी खुशियों को सहेज
कर रक्खा हुआ है.
नजर ना लग जाए
मैंअपनी खुशी को
अंदर कोने कहीं सहेजती रही
मुझे पता ही नहीं चला
वो कब मुझसे कोसों दूर चली गई
और मैं गम की पनाह में
जीती रही
इसी उम्मीद में कि
कहीं किसी कोने में मैने
अपनी खुशियों को सहेज
कर रक्खा हुआ है.
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