वो किसका साया है जो
मुझे बिन छुए भी छूकर निकल जाता है…
एक आवाज़ जो मैंने कभी सुनी ही नही
उसी आवाज़ से मैं बातें करती हूँ
वो कौन है जो मुझे अपने अकेलेपन का
एहसास कराना चाहता है,,
मुझसे अपना एकाकीपन बाँटना चाहता है
कभी ख्वाब में,,तो कभी हकीकत में
अपने वजूद में मुझे शामिल करना चाहता है,,
मुझे एक सूनापन दे जाता है
मैं उससे मिलना चाहती हूँ,
उसे छूना चाहती हूँ
उसे अपने शब्दों में पिरोना चाहती हूँ
अपनी सूनी अंखियों में उसे उतारना चाहती हूँ
तन्हाई में उसकी आहट सुनती हूँ
उसके ना होते हुए भी उसे देखती हूँ
बुत बन जाती हूँ
उसकी बाँहों में झूल जाती हूँ
और होश आने पर
तन्हा होती हूँ ,,
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