जब भी तुम्हे भुलाने की कोशिश की
तुम और याद आये……
और जब लगा ,हाँ भूलने लगी हूँ
तुम किसी ना किसी रूप में सामने आ जाते हो
एक छोटा सा मज़ाक
मुझे इतना भारी पड़ेगा,नही सोचा था
क्यों उसकी बातें भुला नहीपाती
आज जबकि तुमने इसे एक रिश्ते का नाम दे दिया है
मुझे मालूम है कि उस रिश्ते को बखूबी निभाउंगी
लेकिन क्या वो भूल पाऊँगी कभी ?
तुम और याद आये……
और जब लगा ,हाँ भूलने लगी हूँ
तुम किसी ना किसी रूप में सामने आ जाते हो
एक छोटा सा मज़ाक
मुझे इतना भारी पड़ेगा,नही सोचा था
क्यों उसकी बातें भुला नहीपाती
आज जबकि तुमने इसे एक रिश्ते का नाम दे दिया है
मुझे मालूम है कि उस रिश्ते को बखूबी निभाउंगी
लेकिन क्या वो भूल पाऊँगी कभी ?
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