हवा के झोंकों की तरह इक फूल
आके गिरा मुझ कंटीली झाडी में
खुद छलनी होके चला गया
मुझे नरमी देके
इतना दर्द समा चुका है मेरे भीतर
कि साँस भी लेती हूँ
तो हिल्की बंध जाती है.
आके गिरा मुझ कंटीली झाडी में
खुद छलनी होके चला गया
मुझे नरमी देके
इतना दर्द समा चुका है मेरे भीतर
कि साँस भी लेती हूँ
तो हिल्की बंध जाती है.