About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Saturday, October 22, 2011

नरम

हवा के झोंकों की तरह इक फूल
       आके गिरा मुझ कंटीली झाडी में
खुद छलनी होके चला गया
       मुझे नरमी  देके




इतना दर्द समा चुका है मेरे भीतर
  कि साँस भी लेती हूँ
तो हिल्की बंध जाती है.

Wednesday, October 19, 2011

हम

......
    तुम्हारा साथ मुझे हमेशा एक
बरसाती की तरह लगता है
        लगता है तेज बारिश भी मुझे
भिगो ना पायेगी,और
        तेज हवा मेरा रास्ता
न रोक सकेगी
     तुमने मेरी छोटी से छोटी बात भी
दशरथ के वचन सी मानी
        शायद तुम्हे नही मालूम
एक लड़की अपनी बात को
         जिन्दा रखने के लिए ही
खुद की परवाह किए बिना
     अपने में से दूसरे अंश को
जन्म देती है,
           तुम्हारे साथ रहकर ही
मुझमे सीता का सा रूप आता है
         मन करता है तुम्हारे एहसासों की
सांसों का हिस्सा बन जाऊँ
     बस मेरा ये अहसास  बनाये रखना
तुम+मैं =हम
    

Thursday, October 13, 2011

तेरा जाना

तुम्हारे जाने के बाद 
    महसूस हुआ ये कि 
           मेरी जिंदगी की एक  
दीवार ढह गई है 
        मेरे जीवन को मरुस्थल 
बनाने के लिए 
     तुम्हारा जाना ही काफी था  

दाम

आँसू तो रुकने का नाम नहीं  लेते 
       और तुम मुझे हंसने का मौका नही देते 
इतने कठोर तुम क्यों हो गए 
    कि मुझे बर्बाद करके भी अपने 
सर इलज़ाम नही लेते 
    वैसे तो हर चीज़ के तुम दाम लगा लेते हो 
मगर मेरे जख्मों के 
    कोई दाम नही देते 
जब से आई हूँ तेरी जिंदगी में 
             तूने आँसू दिए हंसी ले ली 
रिश्ता ऐसा है कि
     तुझे छोड़ के जा भी नही सकती
शायद अब तो कब्र में ही आराम मिले  
              उसका भी दाम चूकाऊँगी मैं,
तुम मुझे कफन दे देना
      मैं तुम्हारा नकाब वापिस कर दूंगी 
जो तुम्हे मेरे साथ अपने दोस्तों 
      को दिखाने के लिये ओदना  पड़ता था 
मेरे जाने के बाद 
     तुम्हे दो रूप नही जीने पडेगें .....



Wednesday, October 12, 2011

खुश्क आँसू

तुम क्या देख रही हो 
     मेरी सूनी आँखों में चमक 
मेरे उतरे हुए चेहरे पे बनावटी मुस्कान 
    मेरी  आँखों की झूठी चमक 
तेरे सामने मेरा हाल बयां कर रही है 
    मेरे ना चाहते हुए भी 
मेरी खुश्क आँखे 
   सब कुछ बयां कर गईं 
क्योंकि तू मुझे इतना चाहती है 
   कि मेरी खुश्क आँखों की नमी 
तेरी आँखों में दिख रही है  
    फिर क्यों मुझे छोड़ कर जा रही हो 
तू ना जा मेरे ........
       तू ना जा 
पता नही अब बिछुड़ने के बाद 
   फिर तू मुझसे मिल भी पाए या .......

Sunday, October 2, 2011

तब और अब

जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही है,
     सपनों के आकार घटते जा रहे हैं 
अब सपने भी सपने जैसे नहीं रहे 
  उसमे भी एक डर समा गया है.
क्या ज्यादा सपने टूटने के कारण 
           ऐसा होता है,
कोई मुझे इसका जवाब देगा.