About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Sunday, October 2, 2011

तब और अब

जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही है,
     सपनों के आकार घटते जा रहे हैं 
अब सपने भी सपने जैसे नहीं रहे 
  उसमे भी एक डर समा गया है.
क्या ज्यादा सपने टूटने के कारण 
           ऐसा होता है,
कोई मुझे इसका जवाब देगा.
   

2 comments:

  1. Sapne to sapne hai
    Wahi to apne hai
    Pehle sapne rangeen hua karti thi
    Ab Sachchai ke parchayi mei
    Sapno ki rangiyat dhalne lagi
    Par phir bhi Sapne to sapne hai
    Wahi to apne hai!

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  2. सपने तो अपने ही होते हैं इसीलिए उनके पूरे ना होने या टूटने पर ज्यादा तकलीफ होती है,क्योंकि इन्ही सपनों पर हमारा सबसे ज्यादा हक होता है....thanx for the....

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