जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही है,
सपनों के आकार घटते जा रहे हैं
अब सपने भी सपने जैसे नहीं रहे
उसमे भी एक डर समा गया है.
क्या ज्यादा सपने टूटने के कारण
ऐसा होता है,
कोई मुझे इसका जवाब देगा.
सपनों के आकार घटते जा रहे हैं
अब सपने भी सपने जैसे नहीं रहे
उसमे भी एक डर समा गया है.
क्या ज्यादा सपने टूटने के कारण
ऐसा होता है,
कोई मुझे इसका जवाब देगा.
Sapne to sapne hai
ReplyDeleteWahi to apne hai
Pehle sapne rangeen hua karti thi
Ab Sachchai ke parchayi mei
Sapno ki rangiyat dhalne lagi
Par phir bhi Sapne to sapne hai
Wahi to apne hai!
सपने तो अपने ही होते हैं इसीलिए उनके पूरे ना होने या टूटने पर ज्यादा तकलीफ होती है,क्योंकि इन्ही सपनों पर हमारा सबसे ज्यादा हक होता है....thanx for the....
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