About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Friday, February 24, 2012

मेरा आंगन

पश्चिम की ओर डूबते  हुए
       सूरज की लाल रौशनी
 मेरे आंगन में बिखरी हुई है
       मुझे प्यार करने वालों की तरह
शुरू में गहरा लाल
           फिर लाल,धुंधला लाल 
मटमैला लाल
    और फिर..........
सूरज ढल गया.

ईद का चाँद या बकरा

मेरे घर  के सामने 
एक मुस्लिम परिवार  रहता है  
   वो मुस्लिम और मैं हिंदू 
बिलकुल एक दूसरे से जुदा 
   मुझे बोला जाता है कि  उनसे बात  ना करूं 
क्योंकि वो  और हम समान विचारों के नही हैं
लेकिन मुझे समानता दिखती है
उनके यहाँ   का बकरा 
  और अपने घर पर मैं
वो रस्सी से बंधा  रहता है
     मैं रुनझुन करती पाजेब से 
सारे समय बच्चे उससे खेलते रहते हैं
         मैं परिवार के बच्चे खिलाती हूँ 
उसे ईद के लिये लाया गया है
      मुझे दुनियादारी के लिये 
उसको मोटा ताज़ा करने को 
बढिया घास खिलाते हैं
मुझे दिखावे के लिये 
   सज धज कर रहना पड़ता है
वरना मायका और ससुराल 
दोनों ही रूठ जायेंगे,
बस एक ही अंतर हैं
    उसका ईद का एक दिन तय है
लेकिन मुझे उसमे भी समानता दिखती है
        उसको अपने हलाल होने का 
एक दिन मालूम नही है
   मैं रोज हलाल होती हूँ 
पर मुझे झटके का
    दिन मालूम नही है ....





Saturday, February 18, 2012

इंतज़ार

मेरी भीगी आँखें
       तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हैं
लेकिन तुम्हारी इधर उधर होती
                         निगाहों  को देखकर
चुप रह जाती हैं
            मेरा मुरझाया चेहरा
तुम्हें अपने बारे में बताना चाहता है
           लेकिन तुम्हारा रुख
मुझे चुप कर जाता है
         मेरे खामोश लब
ख़ामोशी से ही तुम्हें
        कुछ बतलाना चाहते हैं
लेकिन,
      मेरे आने के बाद तुम्हारी
व्यस्तता दिखाना
    उन्हें खामोश रहने पर मजबूर
कर देते हैं
क्या कभी तुम समझोगे मेरी दास्ताँ
     मेरी खामोश दास्तां
मेरे घर के तीज त्योहारों
      जन्मदिन,शादी की सालगिरह पर
मेरा बनावटी हंसता चेहरा
     तुम्हे ढूंढता   है
सचमुच खुश होकर बोलना
       चाहता है
बोलना चाहता है कि
                   तुम आ गए भैया
क्या सच में तुम आ गए
    क्या किसी बुरी घटना घटने
से पहले
  तुम मेरे घर आओगे भैया 
      भाभी और भतीजे के साथ
तुम आओगे भैया?
     
मन टूट जाते हैं
    पर
रिश्ते नहीं टूटते..... 

Thursday, February 2, 2012

तुम हो क्या

क्यों किसी आह्ट के बिना ही
     चौंक जाती हूँ
ना किसी ने दस्तक दी
     ना कानों ने ही कोई आवाज़ सुनी 
ना ही मेरे दिल ने पुकारा है
         फिर भी क्यों 
क्यों मेरे पैर दरवाजे की
           तरफ दौड़ पड़े हैं
क्यों कोइ जबरन मुझे 
           दरवाजा खोलने पर मजबूर कर रहा है
अकेली ही तो हूँ इतने बरसों से 
    फिर ये किसकी महक मेरी सांसों में 
बसे जा रही है
कौन है जो कह रहा है,
         चल अब बंद दरवाजे खोल दे
मेरे दरवाजों में तो जंग लग चुकी है
                  हिम्मत नही हो रही 
कोई जबरन खुला रहा है
पर ,पर ये क्या 
     सामने कौन है
ये तुम हो क्या 
           सफेद फूल मोगरे के लिये
तुम सच में आए हो 
           या मेरी आँखों में बसी वही 
तस्वीर है,
       जो बीते वक्त के साथ 
धुंधलाई भी नहीं,
        अभी भी वैसी की वैसी ही है

मौत

जिन्दगी काले लिबास में आएगी 
      मेरा शोक करने के लिए 
क्योंकि वो अभागन कहलाएगी 
     मेरे मरने के बाद,
कफन बनेगा मेरा विधुर 
     जिस दिन मैं मर जाऊँगी
या 
मौत बनेगी मेरी विधवा 
     जिस दिन मैं हमेशा के लिए 
चैन की नींद सो जाऊँगी.....

कमी

जब तक तुम साथ थे 
      मुझे तुम्हारा महत्व पता ही नही चला 
लेकिन अब जब तुम मेरे पास नही हो 
         तब लगता है कि
तुम  तो मेरी सांसो से भी ज्यादा 
      जरूरी हो मेरे लिए 
जैसे सूरज के डूब जाने पर 
          चाँद सूरज को रौशनी उधार देकर 
उजियारा कर रहा हो 
        ऐसे ही तुम, तुम्हारी यादें 
मुझे यादों की रौशनी के सहारे 
       जिला रही हैं
लेकिन चाँद चाहें जितनी कोशिश करे
वह रात को दिन तो नहीं कर 

       कर पायेगा 
फिर मैं, मैं तो जीती ही हूँ 
      सिर्फ ..........
फिर तुम्हारी यादें मुझे कैसे .......






जब हम अपने हाथों 
           अपने आँसू मोल लेते हैं
तो हम ही दर्द का सौदा भी करते हैं
            शायद इसीलिए दर्द और आँसू
हमें  इतनी तकलीफ नहीं देते...... 

बनावटी

मैं हँसतीं हूँ  
दुख दर्द  सभी  में  हंसती  हूँ ,
      लेकिन हंसते  हंसते  मेरी  बनावट  थक  जाती  है
खुशी  थक  जाती  है,
ऐसे  ही  कभी  कभी  हमारी  आँखें  भी  
          रोते  रोते  थक   जाती  हैं
थक  जाती  है  मेरी  उदासी  भी 
और  मैं  इन सबसे  दूसरी  तरफ 
     मुंह  घुमा  लेती  हूँ
उदासी  की तरफ  से  पीठ कर  लेती  हूँ,
ताकि  हंसी की छाँव  में 
       खुशी  के साथ  कुछ  पल 
आराम  कर  सकूं 
      क्योंकि फिर मुझे  कोई  वापिस खड़ा  कर देगा 
फिर उसी  आंसुओं  की  कड़ी  धूप  में 
        चलने  के लिए.....