क्यों किसी आह्ट के बिना ही
चौंक जाती हूँ
ना किसी ने दस्तक दी
ना कानों ने ही कोई आवाज़ सुनी
ना ही मेरे दिल ने पुकारा है
फिर भी क्यों
क्यों मेरे पैर दरवाजे की
तरफ दौड़ पड़े हैं
क्यों कोइ जबरन मुझे
दरवाजा खोलने पर मजबूर कर रहा है
अकेली ही तो हूँ इतने बरसों से
फिर ये किसकी महक मेरी सांसों में
बसे जा रही है
कौन है जो कह रहा है,
चल अब बंद दरवाजे खोल दे
मेरे दरवाजों में तो जंग लग चुकी है
हिम्मत नही हो रही
कोई जबरन खुला रहा है
सामने कौन है
ये तुम हो क्या
सफेद फूल मोगरे के लिये
तुम सच में आए हो
या मेरी आँखों में बसी वही
तस्वीर है,
जो बीते वक्त के साथ
धुंधलाई भी नहीं,
अभी भी वैसी की वैसी ही है
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