कौन है,,जो मेरे ठहरे हुए व्यक्तित्व को झंकार रहा है,,
कौन है जो ठहरे हुए पानी में कंकड़ी मार कर
मेरा अस्तित्व हिला रहा है..
कौन है जो मेरे ठहरे हुए जीवन को
मनमौजी बनाने को विवश कर रहा है
कौन है,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या वो तुम हो...........................
अगर तुम हो तो
चले जाओ................
मुझे ऐसे ही रहने दो
मुझे इसकी आदत हो चुकी है.................
कौन है जो ठहरे हुए पानी में कंकड़ी मार कर
मेरा अस्तित्व हिला रहा है..
कौन है जो मेरे ठहरे हुए जीवन को
मनमौजी बनाने को विवश कर रहा है
कौन है,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या वो तुम हो...........................
अगर तुम हो तो
चले जाओ................
मुझे ऐसे ही रहने दो
मुझे इसकी आदत हो चुकी है.................
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