अपनी खुशियों को जाहिर करने से डर लगता है
क्योंकि हर इंसा मुझे नज़र लगाता
सा लगता है,,
लग ना जाए इन खुशियों को ग्रहण
इसलिए
कभी -कभी तो खुद ही की
नज़र का डर लगता है,,,,,
इतने दुःख सह चुकी हूँ
हर शख्श से धोखा खा चुकी हूँ
अब तो हाथ ऊपर उठाकर देखने में भी
भगवान धोखा ना दे दे
ये डर लगता है ...............
गमों में इतना घिर चुकी हूँ
आशा की किरण से भी डर लगता है
हे भगवान ,,
जो मुस्कान इतने सालों में आई है
उसे तेरी मेरी
नज़र ना लगने देना
कहीं तुझसे भी पूरा भरोसा ना उठ जाए
इस अंजाम से भी डर लगता है.....................
क्योंकि हर इंसा मुझे नज़र लगाता
सा लगता है,,
लग ना जाए इन खुशियों को ग्रहण
इसलिए
कभी -कभी तो खुद ही की
नज़र का डर लगता है,,,,,
इतने दुःख सह चुकी हूँ
हर शख्श से धोखा खा चुकी हूँ
अब तो हाथ ऊपर उठाकर देखने में भी
भगवान धोखा ना दे दे
ये डर लगता है ...............
गमों में इतना घिर चुकी हूँ
आशा की किरण से भी डर लगता है
हे भगवान ,,
जो मुस्कान इतने सालों में आई है
उसे तेरी मेरी
नज़र ना लगने देना
कहीं तुझसे भी पूरा भरोसा ना उठ जाए
इस अंजाम से भी डर लगता है.....................
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