इक आह जो बरसो से मेरे अन्दर चीत्कार कर रही है,
सोचती हूँ जब वो बहार निकलेगी तो क्या होगा,,
मेरी बरसो की ओड़ी हुई मुस्कान
वो सबको भगा ले जाएगी अपने साथ
इतने सालों जो मै उधार की हंसी हंसकर
ना सिर्फ दूसरों को बनाती रही
वरन खुद को भी ठगती रही
उसका क्या होगा
सब धूल धूसरित हो जाएगा
मैं ठगनी खुद ही ठगी रह जाउंगी,,,,,,,,
पर अब नही जी पाऊँगी,
मेरा रोम रोम चीत्कार रहा है
अब वो मुझ ठगिया से
उकता रहा है
मेरा रोम रोम चित्कार रहा है
11 AUG..................
सोचती हूँ जब वो बहार निकलेगी तो क्या होगा,,
मेरी बरसो की ओड़ी हुई मुस्कान
वो सबको भगा ले जाएगी अपने साथ
इतने सालों जो मै उधार की हंसी हंसकर
ना सिर्फ दूसरों को बनाती रही
वरन खुद को भी ठगती रही
उसका क्या होगा
सब धूल धूसरित हो जाएगा
मैं ठगनी खुद ही ठगी रह जाउंगी,,,,,,,,
पर अब नही जी पाऊँगी,
मेरा रोम रोम चीत्कार रहा है
अब वो मुझ ठगिया से
उकता रहा है
मेरा रोम रोम चित्कार रहा है
11 AUG..................
No comments:
Post a Comment