जब भी मैं तनहा होती हूँ
मेरा एकाकीपन मुझे बहुत तकलीफ देता है
मैं डर जाती हूँ,तुम्हे पुकारना चाहती हूँ
कोई अंजाना भय मेरी आवाज़ बंद कर देता है
मुझे कोई नजर नही आता
और भय के कारण जब मैं जाग जाती हूँ
तो देखती हूँ,सभी तो मेरे साथ हैं
मैं किसी छोटे बच्चे की तरह
तुम्हारी बाँहों में सिमट जाती हूँ
और तुम भी
मुझे नन्हे बच्चे की तरह से
अपने में सिमटा लेते हो,
तब मैं बहुत गर्वित महसूस करती हूँ
तुम्हे निहारती रहती हूँ,घंटों
और फिर मीठे -२ सपनो में खो जाती हूँ
वो पल मुझे सारे गम भुला देते है। ………… AUG 13...........
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