मैं क्या हूँ तुम्हारी
कभी समझ ही नही पाती
तुम ही समझा दो
कि तुम मेरे क्या हो
कब तक ऐसे जियूं
इसी उहापोह में मेरी आधी उम्र बीत गई
पर समझ न पाई
कि कौन हूँ मैं तुम्हारी
और तुम मेरे
हाँ दुनिया की नजरों में
है एक रिश्ता
मेरा तुम्हारा
पर सच में क्या रिश्ता है
मेरा तुम्हारा
कभी लगता है, मैं और तुम
और कोई नही इस जहाँ में
सबसे बड़ा और गहरा रिश्ता हमारा
और कभी लगता है
मुझे छोडकर तुम सब हो
बस मैं ही नही हूँ कोई तुम्हारी
सिर्फ एक शून्य हूँ,
जिसको जब मन चाहे
किसी के भी पीछे लगा दो
क्यूंकि आगे मेरा कोई अस्तित्व ही नही है ...................AUG 13.
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