सुनो,,
हाँ आया था इक बादल,,कहीं दूर बहुत दूर से,,
बरसाया उसने मुझ रेगिस्तान सी पड़ी भूमि पर
बहुत ठंडा सा नमी देता पानी,,
हाँ मैं भीगने भी लगी थी,
मुझमे भी माटी की सुगंध आने लगी थी,,
लेकिन तभी हवा के झोंके सा जैसा वो आया था,
वैसे ही बिन बताये चला गया वो,,
जता गया की रेगिस्तान में बरसात नही
लेकिन उसकी थोड़ी सी महक रह गई मुझमे,
ना चाहते हुए भी
कोई जामुनी केक्ट्स उग आया
जिन्दगी भर कांटे चुभोने या मेरी गलती जताने को
उफ्फ्फ ये क्या किया. मैंने>>>>>>>>>>>>>मिष्टी
हाँ आया था इक बादल,,कहीं दूर बहुत दूर से,,
बरसाया उसने मुझ रेगिस्तान सी पड़ी भूमि पर
बहुत ठंडा सा नमी देता पानी,,
हाँ मैं भीगने भी लगी थी,
मुझमे भी माटी की सुगंध आने लगी थी,,
लेकिन तभी हवा के झोंके सा जैसा वो आया था,
वैसे ही बिन बताये चला गया वो,,
जता गया की रेगिस्तान में बरसात नही
लेकिन उसकी थोड़ी सी महक रह गई मुझमे,
ना चाहते हुए भी
कोई जामुनी केक्ट्स उग आया
जिन्दगी भर कांटे चुभोने या मेरी गलती जताने को
उफ्फ्फ ये क्या किया. मैंने>>>>>>>>>>>>>मिष्टी
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