सुनो,,
आज तो पुरे चाँद की रात है ना,,
फिर मैं अधूरी क्यों हूँ,,
मेरी रातें अधूरी क्यों हैं?
तुम्हें याद है,
वो सर्दी की रात में ,वो ढक ओड़कर हम दोनों का
थोडा सा पर्दा हटाकर
खिड़की से चाँद को झांकना
आज तो पुरे चाँद की रात है ना,,
फिर मैं अधूरी क्यों हूँ,,
मेरी रातें अधूरी क्यों हैं?
तुम्हें याद है,
वो सर्दी की रात में ,वो ढक ओड़कर हम दोनों का
थोडा सा पर्दा हटाकर
खिड़की से चाँद को झांकना
तुम्हारा कहना ,चाँद का सोंदर्य तुम्हारी नीली आँखों में
सिमट आया है,,तुम्हारे साथ बिताये पल ,,सिमट गए हैं कहीं मुझ में
तुम्हारी यादें,कहीं मेरे दिल को,सितार के तारों की तरह झनझना रही हैं,
आज तो चाँद भी मुझे देखकर
आ गया है मेरे कमरे में चांदनी के साथ
मुझे सहलाने को.
तुम्हारी हरएक कोमल याद ,
मेरे दिल को टीस रही है,
कब तक हम ऐसे ही जियेंगे.................मिष्टी ..
सिमट आया है,,तुम्हारे साथ बिताये पल ,,सिमट गए हैं कहीं मुझ में
तुम्हारी यादें,कहीं मेरे दिल को,सितार के तारों की तरह झनझना रही हैं,
आज तो चाँद भी मुझे देखकर
आ गया है मेरे कमरे में चांदनी के साथ
मुझे सहलाने को.
तुम्हारी हरएक कोमल याद ,
मेरे दिल को टीस रही है,
कब तक हम ऐसे ही जियेंगे.................मिष्टी ..
No comments:
Post a Comment