ये तेरे दीदार की प्यास थी ,
कि मैंने हर उस राह जाते
हर मुसाफिर की सेवा की,
जब वो राहत गुजरकर मुझे दुआ देते,तो
मुझे तेरे मिलन की आस नज़र थी...
वो दुआ के लिए हाथ उठाते थे,
मुझे आसमाँ से तेरे दीदार घूंट मिलता था......... मिष्टी
5 \11 \16
कि मैंने हर उस राह जाते
हर मुसाफिर की सेवा की,
जब वो राहत गुजरकर मुझे दुआ देते,तो
मुझे तेरे मिलन की आस नज़र थी...
वो दुआ के लिए हाथ उठाते थे,
मुझे आसमाँ से तेरे दीदार घूंट मिलता था......... मिष्टी
5 \11 \16
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