इक इक साँस झनझना जाती थी
इक इक तार रुला जाता था,
जब अपनों ने ही बिसार दिया
तो बेगानों से क्या पड़ता था
अब तो अपने-बेगाने सब एक हुए
क्योंकि हमे रोये हुए भी जमाने हुए
अब तो सांसे भी उकता गई हैं,
हमसे
हर साँस पूछती है
क्या अबकि आखिरी हूँ मैं ,
इस जिंदा लाश को
सांसे भी ढो ना पा रहीं है अब
हर साँस को इंतज़ार है
अपने आखिरी होने का
और हमे इंतज़ार है
उनके ,अपने होने का......
AUG.10
इक इक तार रुला जाता था,
जब अपनों ने ही बिसार दिया
तो बेगानों से क्या पड़ता था
अब तो अपने-बेगाने सब एक हुए
क्योंकि हमे रोये हुए भी जमाने हुए
अब तो सांसे भी उकता गई हैं,
हमसे
हर साँस पूछती है
क्या अबकि आखिरी हूँ मैं ,
इस जिंदा लाश को
सांसे भी ढो ना पा रहीं है अब
हर साँस को इंतज़ार है
अपने आखिरी होने का
और हमे इंतज़ार है
उनके ,अपने होने का......
AUG.10
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