दुनिया ने उन आंसुओं की परवाह की
जिन्होंने मेरी आँखों से विदा ली,
बस उसी ने नहीं (पोछा)परवाह की
जिसने इन्हें मेरी आँखों से
ढलकने की वजह बनाया.
और जलती मोम के गिरने में कोई
अंतर नहीं समझा ,
जिसमे से एक उनके कमरे का
अँधियारा दूर कर रही थी
तो दूसरी
उनके जीवन को प्रकाशमय बनाने के लिए
खुद पिघल रही थी
दोनों ही जल जलकर ,पिघला रही थी
अपना जीवन......२०११ ,जून
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