उसको मेरे अंदर से आना था ,पर वह मुझे ये खुशी न दे सका ,,
मैं भगवन के आगे हाथ फेलाये रही
पर उसने मुझे खाली हाथ छोड़ दिया,
मै ऊपर झोली फेलाये ताकती रही ,
लेकिन ,
मेरी सूनी गोद में, उसने ,मेरे आंसुओं के अलावा कुछ न दिया ,
मेरी गोद सुकडती गई
मेरा चेहरा मुझे चिडाने लगा ,तभी,
एक दिन एक बालक आया ,और सबके बीच बोला
ये ही तो मेरी माँ ,है .
इसने मुझे अपने आंसू के रूप में
नो महीने नहीं बरसों तक मुझे पाला है.
इसके आगे कोई कुछ नहीं देख पाया
देखा तो सिर्फ देवताओं ने ,
देवी विंध्यवासिनी ने ,अपनी बूडी काया को
चोले की तरह उतर फेंका ,
और पहन लिया अपना युवाओं वाला वस्त्र
जिसमे अब कृष्ण अपनी छोटी -छोटी उँगलियाँ घुमा रहे हैं.
वो अपनी छोटी छोटी हथेलियों से माँ का चेहरा पकड़
चूम रहे हैं.
उस सुनी गोद में अब ,आंसुओं का गीलापन नहीं
उसके कृष्णा की सू सू है...............
जन्माष्टमी की एक शाम. २००८
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