ना जाने क्यों हर समय खोई खोई रहती हूँ
अपने ही बुने सपनों को जीने के लिए
हर समय सोई सोई रहती हूँ ,
हकीकत में जब सब अंजाना सा लगता हैं
तब अपने ही लिए रोई -रोई फिरती हूँ
ना जाने क्यों
हकीकत में जी नहीं पाती,
इसी जीने के लिए ,शायद ,
हर समय खोई-खोई रहती हूँ..१२/४/२००६
अपने ही बुने सपनों को जीने के लिए
हर समय सोई सोई रहती हूँ ,
हकीकत में जब सब अंजाना सा लगता हैं
तब अपने ही लिए रोई -रोई फिरती हूँ
ना जाने क्यों
हकीकत में जी नहीं पाती,
इसी जीने के लिए ,शायद ,
हर समय खोई-खोई रहती हूँ..१२/४/२००६
No comments:
Post a Comment