About Me
- MISHTY
- New Delhi, DELHI, India
- अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......
Friday, November 30, 2012
अब न जुड पाऊँगी
फूल की पत्तियों की तरह तोड़ दिया मुझको
खूब अच्छे से मसल कुचल दिया मुझको
अब क्या चाहते हो
अब जब तोड़ने के लिए कुछ न बचा
तो मुझे जोड़ना चाहते हो
फिर से तोड़ने के लिए ?
अरे टूटा हुआ तो फूल भी नही जुड़ता
तो मैं तो एक जीती जागती ---------------
जिसे पल पल आपने तोडकर बिखेरा है
अब क्यों उसे जोड़ने की कौशिश कर रहे हैं
क्योंकि इतना टूटने के बाद अब न मैं
जुड़ पाने की स्थिति में रह गई हूँ
और ,,न आपके वश की बात !!!!!!!!!
अगर कर सको तो सिर्फ इतना कर दो
मेरे टूटे हुए बिखरे टुकड़े समेट दो
कर पाओगे नव
इतना //
30-11-12...............
गुमनाम
कितने सालों बाद
अब तुम मिले हो जो
मेरी पुरानी सूरत मांगते हो
कहाँ से लाऊं
जो अब पता नही गुमनामी
के किस अंधेरो में खो
चुकी है
2012...............
अब तुम मिले हो जो
मेरी पुरानी सूरत मांगते हो
कहाँ से लाऊं
जो अब पता नही गुमनामी
के किस अंधेरो में खो
चुकी है
2012...............
Monday, October 15, 2012
जानती थी मैं
जानती थी मैं,,
मुझे कोई भी मेरे जैसा नही मिलेगा.
फिर भी विश्वास करने की बुरी आदत है
तो कर लिया
फिर वही धोखा ,,अविश्वास ----------------------वही सब दिखावा
क्या सच में कोई नही
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा हो
मुझे पता है,,एक दिन वो मिलेगा
जरूर मिलेगा ,,
उसी के इंतज़ार में तो
पलकें बिछाए बैठी हूँ,,,,,,,,,,,,,
वो जरूर मिलेगा
एक दिन........................................
मुझे कोई भी मेरे जैसा नही मिलेगा.
फिर भी विश्वास करने की बुरी आदत है
तो कर लिया
फिर वही धोखा ,,अविश्वास ----------------------वही सब दिखावा
क्या सच में कोई नही
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा हो
मुझे पता है,,एक दिन वो मिलेगा
जरूर मिलेगा ,,
उसी के इंतज़ार में तो
पलकें बिछाए बैठी हूँ,,,,,,,,,,,,,
वो जरूर मिलेगा
एक दिन........................................
Tuesday, October 9, 2012
वापिस
लो अजनबी ,
सिमटा लिया मैंने अपने आपको
वापिस उसी तरह
जैसे जी रही थी,तुमसे मिलने से पहले
पर तुम्हे नही भूल पाऊँगी,
तुमने मुझे पर तो दिए उड़ने के लिए
लेकिन जैसे ही मैं उडी
तुमने मुझे आकाश तक
पहुँचने ही नही दिया
और अपनी असलियत दिखा दी
लो अजनबी,सिमट गई मैं
वापिस
अब कभी न उड़ने और अजनबियों पर
कभी विस्वास न करने के लिए
सिमटा लिया मैंने अपने आपको .....................
dec.12.......
अजनबी
तुम कौन हो अजनबी,,
जो मेरी वीरान जिन्दगी में बाहर लेकर आये हो.
मैं तुम्हें जानती नही,,
पहचानती नही,,फिर भी तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ..
कौन हो तुम
क्यों आये हो,,पतझड़ में फूल खिलाने
तुम भी चले जाओगे एक दिन,,
मुझे यूँ ही अकेला छोडकर
तुम चले जाओ
इससे पहले कि
मैं एक बार फिर से टूट कर बिखर जाऊँ
तुम चले जाओ अजनबी,,
मेरी जिन्दगी से चले जाओ,,
क्योंकि शायद एक बार का और टूटना
मैं बर्दास्त ना कर पाऊ.........................
जो मेरी वीरान जिन्दगी में बाहर लेकर आये हो.
मैं तुम्हें जानती नही,,
पहचानती नही,,फिर भी तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ..
कौन हो तुम
क्यों आये हो,,पतझड़ में फूल खिलाने
तुम भी चले जाओगे एक दिन,,
मुझे यूँ ही अकेला छोडकर
तुम चले जाओ
इससे पहले कि
मैं एक बार फिर से टूट कर बिखर जाऊँ
तुम चले जाओ अजनबी,,
मेरी जिन्दगी से चले जाओ,,
क्योंकि शायद एक बार का और टूटना
मैं बर्दास्त ना कर पाऊ.........................
Saturday, October 6, 2012
उर्मिला
तुमने तो जाते हुए आराम से कह दिया \
कि रोना नही,,
मैंने भी भरी आँखों से तुम्हें वचन दे दिया,,,,,,,
जुबां से बोलती तो रो पड़ती
चुपके से सर हिला दिया मैंने ,,,,,,,,
अब महसूस किया उर्मिला का दर्द
जिसने विरह में 14 साल
आँसू गिरने ना दिए
पर मैं इन पलकों का क्या करूँ
जो मेरे आंसुओं का बोझ उठा ही नही पा रही........
6-10-12........
Sunday, September 30, 2012
नया सवेरा
सूर्य की रौशनी
हर तरफ उजाला करती है
फिर मेरे दिल के भीतर ही
क्यों अँधियारा छाया है ,,,,,,,
क्या मेरे लिये भी सूर्य कभी
अपने अंदर छुपा के लाएगा सवेरा;
सवेरा !
जो मेरे अंदर से
अंधियारे को भगा देगा ,,,,
वो सवेरा जो सिर्फ मेरे लिये होगा
एक नया सवेरा ,,मेरा सवेरा
जो आएगा तो सिर्फ
मेरे अधरों पे मुस्कान बिखेरने के लिए
जो होगी मेरी मुस्काती सुबह.......................
हर तरफ उजाला करती है
फिर मेरे दिल के भीतर ही
क्यों अँधियारा छाया है ,,,,,,,
क्या मेरे लिये भी सूर्य कभी
अपने अंदर छुपा के लाएगा सवेरा;
सवेरा !
जो मेरे अंदर से
अंधियारे को भगा देगा ,,,,
वो सवेरा जो सिर्फ मेरे लिये होगा
एक नया सवेरा ,,मेरा सवेरा
जो आएगा तो सिर्फ
मेरे अधरों पे मुस्कान बिखेरने के लिए
जो होगी मेरी मुस्काती सुबह.......................
डर
अपनी खुशियों को जाहिर करने से डर लगता है
क्योंकि हर इंसा मुझे नज़र लगाता
सा लगता है,,
लग ना जाए इन खुशियों को ग्रहण
इसलिए
कभी -कभी तो खुद ही की
नज़र का डर लगता है,,,,,
इतने दुःख सह चुकी हूँ
हर शख्श से धोखा खा चुकी हूँ
अब तो हाथ ऊपर उठाकर देखने में भी
भगवान धोखा ना दे दे
ये डर लगता है ...............
गमों में इतना घिर चुकी हूँ
आशा की किरण से भी डर लगता है
हे भगवान ,,
जो मुस्कान इतने सालों में आई है
उसे तेरी मेरी
नज़र ना लगने देना
कहीं तुझसे भी पूरा भरोसा ना उठ जाए
इस अंजाम से भी डर लगता है.....................
क्योंकि हर इंसा मुझे नज़र लगाता
सा लगता है,,
लग ना जाए इन खुशियों को ग्रहण
इसलिए
कभी -कभी तो खुद ही की
नज़र का डर लगता है,,,,,
इतने दुःख सह चुकी हूँ
हर शख्श से धोखा खा चुकी हूँ
अब तो हाथ ऊपर उठाकर देखने में भी
भगवान धोखा ना दे दे
ये डर लगता है ...............
गमों में इतना घिर चुकी हूँ
आशा की किरण से भी डर लगता है
हे भगवान ,,
जो मुस्कान इतने सालों में आई है
उसे तेरी मेरी
नज़र ना लगने देना
कहीं तुझसे भी पूरा भरोसा ना उठ जाए
इस अंजाम से भी डर लगता है.....................
Friday, September 28, 2012
किसी के साथ अपनी जिन्दगी के सबसे
सुनहरे पल
हंसकर ,रोकर .सुखी रहकर दुखी रहकर
जैसे भी तुमने गुजारे
तुमने उस अजनबी को
अपना सर्वस्व दे दिया
१ उम्र बिता दी उसके साथ
जब वही अजनबी
जो आपका सब कुछ हो चूका है
आपको बोले की तुमने किया ही क्या है
मेरे लिए
तब आपका पूरा अस्तित्व
एक पल में
बिखर जाता है,टूटे हुए कांच की तरह ......मिष्टी 29\9\12
सुनहरे पल
हंसकर ,रोकर .सुखी रहकर दुखी रहकर
जैसे भी तुमने गुजारे
तुमने उस अजनबी को
अपना सर्वस्व दे दिया
१ उम्र बिता दी उसके साथ
जब वही अजनबी
जो आपका सब कुछ हो चूका है
आपको बोले की तुमने किया ही क्या है
मेरे लिए
तब आपका पूरा अस्तित्व
एक पल में
बिखर जाता है,टूटे हुए कांच की तरह ......मिष्टी 29\9\12
हम
मेरे हाथ में तेरा हाथ है
लेकिन स्पर्श की गर्माहट नही है,,
मेरी आँखों में तेरी आँखे हैं
लेकिन दिखता (ध्यान में ) तू नही है,,,,,,,,,
मेरे पास में तू है
लेकिन वो एहसास नही है
मेरे लिये तू ही सर्वस्व है
लेकिन मेरा दिल अब मेरा नही है
तेरे बदलते जिन्दगी के मायने ने
हमें -हम से ,,
तू और मैं बना दिया ........................
OCT..11...............
लेकिन स्पर्श की गर्माहट नही है,,
मेरी आँखों में तेरी आँखे हैं
लेकिन दिखता (ध्यान में ) तू नही है,,,,,,,,,
मेरे पास में तू है
लेकिन वो एहसास नही है
मेरे लिये तू ही सर्वस्व है
लेकिन मेरा दिल अब मेरा नही है
तेरे बदलते जिन्दगी के मायने ने
हमें -हम से ,,
तू और मैं बना दिया ........................
OCT..11...............
तुम आ जाओ ना
जैसे ही मेरी आँख से आँसू निकला
तुमने अपनी हथेली आगे कर दी
मैं तो खाली मुस्कुरा के रह गई
पर तुम मेरे सारे आँसू
अपनी आँखों में
भर के चली गईं
तुम फिर कब आओगी
आ जाओ ना........................
10-10-11..........
तुमने अपनी हथेली आगे कर दी
मैं तो खाली मुस्कुरा के रह गई
पर तुम मेरे सारे आँसू
अपनी आँखों में
भर के चली गईं
तुम फिर कब आओगी
आ जाओ ना........................
10-10-11..........
Thursday, September 27, 2012
अनजानी सी मैं
ये कैसी स्थिति हो गई है मेरी
जब हंसती हूँ तो
आँसू निकल पड़ते हैं और
जब रोती हूँ तो एक मुस्कान
मेरे अधरों पर खिल उठती है,,,,,,,,,,
क्या हूँ मैं
खुद ही से अनजान
एक अनजानी सी मैं..........................
जब हंसती हूँ तो
आँसू निकल पड़ते हैं और
जब रोती हूँ तो एक मुस्कान
मेरे अधरों पर खिल उठती है,,,,,,,,,,
क्या हूँ मैं
खुद ही से अनजान
एक अनजानी सी मैं..........................
Tuesday, September 25, 2012
ठहराव
कौन है,,जो मेरे ठहरे हुए व्यक्तित्व को झंकार रहा है,,
कौन है जो ठहरे हुए पानी में कंकड़ी मार कर
मेरा अस्तित्व हिला रहा है..
कौन है जो मेरे ठहरे हुए जीवन को
मनमौजी बनाने को विवश कर रहा है
कौन है,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या वो तुम हो...........................
अगर तुम हो तो
चले जाओ................
मुझे ऐसे ही रहने दो
मुझे इसकी आदत हो चुकी है.................
कौन है जो ठहरे हुए पानी में कंकड़ी मार कर
मेरा अस्तित्व हिला रहा है..
कौन है जो मेरे ठहरे हुए जीवन को
मनमौजी बनाने को विवश कर रहा है
कौन है,,,,,,,,,,,,,,,,
क्या वो तुम हो...........................
अगर तुम हो तो
चले जाओ................
मुझे ऐसे ही रहने दो
मुझे इसकी आदत हो चुकी है.................
Sunday, September 23, 2012
दर्द
मैं ,,
मैं एक दर्द हूँ ,,दर्द की आवाज़ नही होती
मैं क्यों कहूँ कि तुम बदल गए
क्योंकि,,
जो मैं कल थी वो खुद ही मैं
आज वैसी नही हूँ....
कल मैं हंगामा थी ,, आज दर्द की पनाह में
गूंगी हो चुकी हूँ|
ये जिन्दगी मेरे लिए ख्वाब जैसी है
जिसमे मैं नही हूँ !
क्योंकि किसी ने मुझे आँखों में बसाया ही नही ,,
अब पूछते हो,, मैं कौन हूँ
मैं एक ऐसा सवाल हूँ जिसका कोई
जवाब ही नही है,,,,,,,,,,,,
ये सूरज जरूर मुस्का के तसल्ली देता है
कहता है ------------------
जलता हूँ मैं भी ,,अकेली तू ही नही है.........................
मैं एक नाम हूँ
सिर्फ एक नाम------------मिष्टी......................
मैं एक दर्द हूँ ,,दर्द की आवाज़ नही होती
मैं क्यों कहूँ कि तुम बदल गए
क्योंकि,,
जो मैं कल थी वो खुद ही मैं
आज वैसी नही हूँ....
कल मैं हंगामा थी ,, आज दर्द की पनाह में
गूंगी हो चुकी हूँ|
ये जिन्दगी मेरे लिए ख्वाब जैसी है
जिसमे मैं नही हूँ !
क्योंकि किसी ने मुझे आँखों में बसाया ही नही ,,
अब पूछते हो,, मैं कौन हूँ
मैं एक ऐसा सवाल हूँ जिसका कोई
जवाब ही नही है,,,,,,,,,,,,
ये सूरज जरूर मुस्का के तसल्ली देता है
कहता है ------------------
जलता हूँ मैं भी ,,अकेली तू ही नही है.........................
मैं एक नाम हूँ
सिर्फ एक नाम------------मिष्टी......................
भटकाव
ना जाने कितने सालों से ,एक ही रास्ते पे
चलती जा रही थी
कई बार लोगों ने भटकाने की कोशिश की
पर मैं उसी रास्ते पर अडिगता से दम भर कर चलती रही
कुछ नाराज़ भी हो गए,,तो कुछ खुश;
और मैं-------------------अपने में ही खोई रही
कि अचानक ,,एक हवा का झोंका
आया,,
नही पता कहाँ चल दी,,
उस हवा के झोंके की खुशबु के साथ,,
खोई -खोई चलती गई ,,
मुझे मालूम था कि बहक रही हूँ
मेरा खुदा मुझे गुमराह कर रहा था या
जिन्दगी जो पतझर के समान हो गई थी
उसमे फूल खिला रहा था
नही जानती !!!!
पर पांव थिरक रहे थे ,मचल रहे थे
उस खुशबु के पीछे जाने को
और मैं चलते -२ रुक गई
कहाँ जाऊँ,नही समझ पा रही
वो खुशबु मुझे खींचती है अपनी और
उस खुशबु को नही छोड़ पा रही हूँ
और ना ही कदमों को अपनी गली से बाहर
जाने देना चाहती हूँ,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई मुझे इस भव -सागर से बाहर निकालेगा
आ जाओ कोई तो -------------------------
कोई तो निकालो .......................
चलती जा रही थी
कई बार लोगों ने भटकाने की कोशिश की
पर मैं उसी रास्ते पर अडिगता से दम भर कर चलती रही
कुछ नाराज़ भी हो गए,,तो कुछ खुश;
और मैं-------------------अपने में ही खोई रही
कि अचानक ,,एक हवा का झोंका
आया,,
नही पता कहाँ चल दी,,
उस हवा के झोंके की खुशबु के साथ,,
खोई -खोई चलती गई ,,
मुझे मालूम था कि बहक रही हूँ
मेरा खुदा मुझे गुमराह कर रहा था या
जिन्दगी जो पतझर के समान हो गई थी
उसमे फूल खिला रहा था
नही जानती !!!!
पर पांव थिरक रहे थे ,मचल रहे थे
उस खुशबु के पीछे जाने को
और मैं चलते -२ रुक गई
कहाँ जाऊँ,नही समझ पा रही
वो खुशबु मुझे खींचती है अपनी और
उस खुशबु को नही छोड़ पा रही हूँ
और ना ही कदमों को अपनी गली से बाहर
जाने देना चाहती हूँ,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई मुझे इस भव -सागर से बाहर निकालेगा
आ जाओ कोई तो -------------------------
कोई तो निकालो .......................
नव
मुझे सामने का समन्दर बहुत प्यारा लग रहा है
मैं जब इसमें खड़ी होती हूँ
बड़ा सुकून मिलता है |
और जो सुकून मुझे मिलता है
वो मैं तुम्हें भी देती हूँ ,,फिर क्यों ?
उस समन्दर की गहराई से डर जाती हूँ !!!!!!!
क्यों आगे ,और आगे नही जा पाती हूँ
पता है नव ,क्यों ?
क्योंकि उस पार आप नही हैं...
इसलिए नव
मुझे इसी किनारे पर
इतनी कसकर अपनी आगोश में ले लो
कि मैं समन्दर के सुकून को भूलकर
सिर्फ और सिर्फ तुम में ही खो जाऊँ.......................
aug........6..............
Friday, August 3, 2012
कौन हो तुम,,प्रियतम
कौन हो तुम ,
जो अचानक मेरी जिन्दगी में चले आए हो ,
मैने बचपन से अभी तक तुम्हें नही देखा,,
नही जाना,
फिर कैसे ,किस रूप में ,
आ गए मेरे जीवन में ,
जिसे जाना नही,पहचाना नही,अचानक से
वो सबसे प्यारा हो गया !
अब कोई रिश्ता तुमसे बदकर नही रहा,,
तुमने तो मेरे अगले सात जन्मो पर
कब्जा कर लिया,,
कोन हो तुम,मेरे जिन्दगी के मालिक
या मेरी जिन्दगी!!!!!!!!!!!!!
क्यों एक मिलन के बाद
सब तरफ तुम ही तुम दीखते हो,,
सबके चेहरे में तुम्हारा ही चेहरा नज़र आता है
क्यों तुम्हारे एक स्पर्श के बाद
नही समझ पाती ,कि कब मैं तुम्हारे साथ नही हूँ,,
जिस आइने के सामने से हटती नही थी
उसी के सामने क्यों लजा जाती हूँ !!!!!!!!!!!
क्यों नही समझ पाती
कि ये तुम हो--------या मैं
कौन हो तुम ,जिसने मेरे स्वरूप का
यूँ हरन कर लिया है,,,,,,,,,,,कौन हो तुम
2 aug.12...........
Saturday, May 19, 2012
चलते चलते
अरे,
तुम भी चल दिए,मुझे छोड़ के
अभी तो बाकि है मेरी चिता में अंगारे
फिर तुम कहाँ चल दिए
तुम तो जानते हो ना,मैं अँधेरे से डरती हूँ,
पर अब नही डरूंगी,तुम्हें तंग नही करूंगी
तुम जाओ प्रियतम
मैने अंधकार में भी
तुम्हारी आकृति अपनी चिता के धुंए से बना ली है
इसीलिए शांत लेटी हुई हूँ.
आज तुम्हारी गरमाई महसूस नही हो रही
शायद इसीलिए
चिता भी ठंडी लग रही है
पर क्या आज तुम्हें मेरा आगोश
मेरी गर्माई नही चाहिये
शायद इसीलिए तुम भी चल दिए.
सुनों,आप बार बार आँखे पोंछ रहे थे
मुझे अच्छा नही लगा
मैं अपना वचन नही निभा पाई
मैने आपको रुला दिया
मैने आपका साथ बीच में ही छोड़ दिया
हमने साथ में बहुत कम वक्त बिताया
वैसे तो हर जगह मैं ज़िद करके
आपको अपने साथ लेके जाती थी
पर यहाँ,
मुझे माफ़ करना मेरे प्रियतम
मैं यहाँ तुम्हें अपने साथ नही ले जा सकती
तुम्हारे ज़िद करने के वाबजूद,
क्योंकि,
घर पर हमारे प्यार की निशानियां
सुबक रही हैं,
अलविदा नही कहूंगी
क्योंकि
तुम्हारी धडकनों में
सिर्फ और सिर्फ मैं ही धडकती हूँ
और मैं मरना नही चाहती
इसलिए अलविदा नही कहूंगी,पति
कभी नही कहूंगी,
तुम्हारी सांसों में,धड़कन में
जीती रहूंगी,
जब तक तुम दुबारा से मेरी मांग भरने नहीं आओगे......
तुम भी चल दिए,मुझे छोड़ के
अभी तो बाकि है मेरी चिता में अंगारे
फिर तुम कहाँ चल दिए
तुम तो जानते हो ना,मैं अँधेरे से डरती हूँ,
पर अब नही डरूंगी,तुम्हें तंग नही करूंगी
तुम जाओ प्रियतम
मैने अंधकार में भी
तुम्हारी आकृति अपनी चिता के धुंए से बना ली है
इसीलिए शांत लेटी हुई हूँ.
आज तुम्हारी गरमाई महसूस नही हो रही
शायद इसीलिए
चिता भी ठंडी लग रही है
पर क्या आज तुम्हें मेरा आगोश
मेरी गर्माई नही चाहिये
शायद इसीलिए तुम भी चल दिए.
सुनों,आप बार बार आँखे पोंछ रहे थे
मुझे अच्छा नही लगा
मैं अपना वचन नही निभा पाई
मैने आपको रुला दिया
मैने आपका साथ बीच में ही छोड़ दिया
हमने साथ में बहुत कम वक्त बिताया
वैसे तो हर जगह मैं ज़िद करके
आपको अपने साथ लेके जाती थी
पर यहाँ,
मुझे माफ़ करना मेरे प्रियतम
मैं यहाँ तुम्हें अपने साथ नही ले जा सकती
तुम्हारे ज़िद करने के वाबजूद,
क्योंकि,
घर पर हमारे प्यार की निशानियां
सुबक रही हैं,
अलविदा नही कहूंगी
क्योंकि
तुम्हारी धडकनों में
सिर्फ और सिर्फ मैं ही धडकती हूँ
और मैं मरना नही चाहती
इसलिए अलविदा नही कहूंगी,पति
कभी नही कहूंगी,
तुम्हारी सांसों में,धड़कन में
जीती रहूंगी,
जब तक तुम दुबारा से मेरी मांग भरने नहीं आओगे......
Tuesday, April 24, 2012
बदलते रिश्ते
बहुत मान था मुझे आपके ऊपर
मैने आपको क्या क्या बना रखा था
रोती थी,परेशान होती थी
तो अपनी आंखों में आपकी मूरत बसा कर
घंटों आपसे सबकी शिकायत करती थी.
तकिये को आप बना कर
अपने सारे आँसू उड़ेल देती थी.
तकिया जब ज्यादा गीला हो जाता
तो समझती कि आपका कुरता गीला हो गया
उसे सुखाती,सहलाती.
फिर चैन से लिपट कर सो जाती.
आपके इतना अनदेखा करने के बावज़ूद
एक अलग छवि दिल में बसा रखी थी
अगर आपके लिए कोई कुछ कहे
तो दिल रोता था,लड़ पडती सबसे
लेकिन अब ,जब मैं तुमसे बहुत दूर
जा ही रही थी,तब तो कम से कम
मुझे लड़िया देते,
चलते समय का
आप ही के सामने
आपकी प्रियतमा का दिया तोहफा
मैं नही बर्दास्त कर पा रही हूँ
सब खत्म हो गया
तुम्हें आँसूओं के सहारे
अपनी नज़रों से गिरा रही हूँ
मैने भी अपने प्रिये का सहारा लिया
मैं उसके कांधे पर सर रखकर रोई,
ताकि जिन् आंसुओं के जरिए
तुम मेरी नजरों से गिरो
तो कोई चोट न लगे.
मेरे सारे आँसू मेरे प्रिय के कांधे से लुडक कर
सीधे उनके दिल तक पहुंचे,
अपनी तरफ से तुम्हें धूल में नही मिलने दिया
क्योंकि अब जब मेरी नजरों से तुम गिर गए
तब भी आपका अपमान
बर्दास्त नही कर पाऊँगी.....
Saturday, March 31, 2012
रोना ना माँ
कब मैंने सोचा था माँ मैं
तुमसे दूर जाऊँगी ,
मैं तेरी छाया हूँ माँ मैं ,
तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी.
मैं तो तेरे पास रहूंगी
मिष्टी भले चली जाएगी,
जब भी तुम आवाज़ लगाओगी
मैं दौड़ी दौड़ी आउंगी
वही तेरी छोटी सी गुडिया बनकर
वही गीत दोहराऊँगी
(सात समन्दर पार से ,गुड़ियों के बाज़ार से )
शायद अब खेल खिलौने वाली गुडिया ना मांगू माँ
क्योंकि अब मेरे आंगन में भी गुड्डे गुडिया खेलते हैं माँ
लेकिन ,तुम्हारे आलू के परांठे हमें खयालों में ही सही ,
नजदीक तो रखेंगे ना माँ .
वो लाल चूड़ियां तुम्हें
मेरे पास पहुंचाएगी,"मेरी छवि दिखलाएंगी "
और फिर जैसे
चाँद के बिना रात ,सूर्य के बिना प्रकाश
कोई सोच नहीं सकता
उसी तरह मैं और तुम भी दूर नही हो सकते,माँ.
इन्द्रधनुष के रंगों को जानने के लिए
आकाश बनना जरूरी नहीं होता
उसी तरह मेरा तेरा प्यार
दूर पास का मोहताज नही ,माँ
मैं तो पापा की कंठमाला माँ
उन्हें छोड़ कहाँ जाऊँगी......
मैं तेरे पल्लू में लिपटी
तेरे संग तेरी छाया रूप में
वहीं पर सो जाऊँगी
मैं तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी माँ
मैं तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी माँ ....
तुमसे दूर जाऊँगी ,
मैं तेरी छाया हूँ माँ मैं ,
तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी.
मैं तो तेरे पास रहूंगी
मिष्टी भले चली जाएगी,
जब भी तुम आवाज़ लगाओगी
मैं दौड़ी दौड़ी आउंगी
वही तेरी छोटी सी गुडिया बनकर
वही गीत दोहराऊँगी
(सात समन्दर पार से ,गुड़ियों के बाज़ार से )
शायद अब खेल खिलौने वाली गुडिया ना मांगू माँ
क्योंकि अब मेरे आंगन में भी गुड्डे गुडिया खेलते हैं माँ
लेकिन ,तुम्हारे आलू के परांठे हमें खयालों में ही सही ,
नजदीक तो रखेंगे ना माँ .
वो लाल चूड़ियां तुम्हें
मेरे पास पहुंचाएगी,"मेरी छवि दिखलाएंगी "
और फिर जैसे
चाँद के बिना रात ,सूर्य के बिना प्रकाश
कोई सोच नहीं सकता
उसी तरह मैं और तुम भी दूर नही हो सकते,माँ.
इन्द्रधनुष के रंगों को जानने के लिए
आकाश बनना जरूरी नहीं होता
उसी तरह मेरा तेरा प्यार
दूर पास का मोहताज नही ,माँ
मैं तो पापा की कंठमाला माँ
उन्हें छोड़ कहाँ जाऊँगी......
मैं तेरे पल्लू में लिपटी
तेरे संग तेरी छाया रूप में
वहीं पर सो जाऊँगी
मैं तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी माँ
मैं तुझे छोड़ कहाँ जाऊँगी माँ ....
Friday, February 24, 2012
मेरा आंगन
पश्चिम की ओर डूबते हुए
सूरज की लाल रौशनी
मेरे आंगन में बिखरी हुई है
मुझे प्यार करने वालों की तरह
शुरू में गहरा लाल
फिर लाल,धुंधला लाल
मटमैला लाल
और फिर..........
सूरज ढल गया.
सूरज की लाल रौशनी
मेरे आंगन में बिखरी हुई है
मुझे प्यार करने वालों की तरह
शुरू में गहरा लाल
फिर लाल,धुंधला लाल
मटमैला लाल
और फिर..........
सूरज ढल गया.
ईद का चाँद या बकरा
मेरे घर के सामने
एक मुस्लिम परिवार रहता है
वो मुस्लिम और मैं हिंदू
बिलकुल एक दूसरे से जुदा
मुझे बोला जाता है कि उनसे बात ना करूं
क्योंकि वो और हम समान विचारों के नही हैं
लेकिन मुझे समानता दिखती है
उनके यहाँ का बकरा
और अपने घर पर मैं
वो रस्सी से बंधा रहता है
मैं रुनझुन करती पाजेब से
सारे समय बच्चे उससे खेलते रहते हैं
मैं परिवार के बच्चे खिलाती हूँ
उसे ईद के लिये लाया गया है
मुझे दुनियादारी के लिये
उसको मोटा ताज़ा करने को
बढिया घास खिलाते हैं
मुझे दिखावे के लिये
सज धज कर रहना पड़ता है
वरना मायका और ससुराल
दोनों ही रूठ जायेंगे,
बस एक ही अंतर हैं
उसका ईद का एक दिन तय है
लेकिन मुझे उसमे भी समानता दिखती है
उसको अपने हलाल होने का
एक दिन मालूम नही है
मैं रोज हलाल होती हूँ
पर मुझे झटके का
दिन मालूम नही है ....
एक मुस्लिम परिवार रहता है
वो मुस्लिम और मैं हिंदू
बिलकुल एक दूसरे से जुदा
मुझे बोला जाता है कि उनसे बात ना करूं
क्योंकि वो और हम समान विचारों के नही हैं
लेकिन मुझे समानता दिखती है
उनके यहाँ का बकरा
और अपने घर पर मैं
वो रस्सी से बंधा रहता है
मैं रुनझुन करती पाजेब से
सारे समय बच्चे उससे खेलते रहते हैं
मैं परिवार के बच्चे खिलाती हूँ
उसे ईद के लिये लाया गया है
मुझे दुनियादारी के लिये
उसको मोटा ताज़ा करने को
बढिया घास खिलाते हैं
मुझे दिखावे के लिये
सज धज कर रहना पड़ता है
वरना मायका और ससुराल
दोनों ही रूठ जायेंगे,
बस एक ही अंतर हैं
उसका ईद का एक दिन तय है
लेकिन मुझे उसमे भी समानता दिखती है
उसको अपने हलाल होने का
एक दिन मालूम नही है
मैं रोज हलाल होती हूँ
पर मुझे झटके का
दिन मालूम नही है ....
Saturday, February 18, 2012
इंतज़ार
मेरी भीगी आँखें
तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हैं
लेकिन तुम्हारी इधर उधर होती
निगाहों को देखकर
चुप रह जाती हैं
मेरा मुरझाया चेहरा
तुम्हें अपने बारे में बताना चाहता है
लेकिन तुम्हारा रुख
मुझे चुप कर जाता है
मेरे खामोश लब
ख़ामोशी से ही तुम्हें
कुछ बतलाना चाहते हैं
लेकिन,
मेरे आने के बाद तुम्हारी
व्यस्तता दिखाना
उन्हें खामोश रहने पर मजबूर
कर देते हैं
क्या कभी तुम समझोगे मेरी दास्ताँ
मेरी खामोश दास्तां
मेरे घर के तीज त्योहारों
जन्मदिन,शादी की सालगिरह पर
मेरा बनावटी हंसता चेहरा
तुम्हे ढूंढता है
सचमुच खुश होकर बोलना
चाहता है
बोलना चाहता है कि
तुम आ गए भैया
क्या सच में तुम आ गए
क्या किसी बुरी घटना घटने
से पहले
तुम मेरे घर आओगे भैया
भाभी और भतीजे के साथ
तुम आओगे भैया?
मन टूट जाते हैं
पर
रिश्ते नहीं टूटते.....
तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हैं
लेकिन तुम्हारी इधर उधर होती
निगाहों को देखकर
चुप रह जाती हैं
मेरा मुरझाया चेहरा
तुम्हें अपने बारे में बताना चाहता है
लेकिन तुम्हारा रुख
मुझे चुप कर जाता है
मेरे खामोश लब
ख़ामोशी से ही तुम्हें
कुछ बतलाना चाहते हैं
लेकिन,
मेरे आने के बाद तुम्हारी
व्यस्तता दिखाना
उन्हें खामोश रहने पर मजबूर
कर देते हैं
क्या कभी तुम समझोगे मेरी दास्ताँ
मेरी खामोश दास्तां
मेरे घर के तीज त्योहारों
जन्मदिन,शादी की सालगिरह पर
मेरा बनावटी हंसता चेहरा
तुम्हे ढूंढता है
सचमुच खुश होकर बोलना
चाहता है
बोलना चाहता है कि
तुम आ गए भैया
क्या सच में तुम आ गए
क्या किसी बुरी घटना घटने
से पहले
तुम मेरे घर आओगे भैया
भाभी और भतीजे के साथ
तुम आओगे भैया?
मन टूट जाते हैं
पर
रिश्ते नहीं टूटते.....
Thursday, February 2, 2012
तुम हो क्या
क्यों किसी आह्ट के बिना ही
चौंक जाती हूँ
ना किसी ने दस्तक दी
ना कानों ने ही कोई आवाज़ सुनी
ना ही मेरे दिल ने पुकारा है
फिर भी क्यों
क्यों मेरे पैर दरवाजे की
तरफ दौड़ पड़े हैं
क्यों कोइ जबरन मुझे
दरवाजा खोलने पर मजबूर कर रहा है
अकेली ही तो हूँ इतने बरसों से
फिर ये किसकी महक मेरी सांसों में
बसे जा रही है
कौन है जो कह रहा है,
चल अब बंद दरवाजे खोल दे
मेरे दरवाजों में तो जंग लग चुकी है
हिम्मत नही हो रही
कोई जबरन खुला रहा है
सामने कौन है
ये तुम हो क्या
सफेद फूल मोगरे के लिये
तुम सच में आए हो
या मेरी आँखों में बसी वही
तस्वीर है,
जो बीते वक्त के साथ
धुंधलाई भी नहीं,
अभी भी वैसी की वैसी ही है
कमी
जब तक तुम साथ थे
मुझे तुम्हारा महत्व पता ही नही चला
लेकिन अब जब तुम मेरे पास नही हो
तब लगता है कि
तुम तो मेरी सांसो से भी ज्यादा
जरूरी हो मेरे लिए
जैसे सूरज के डूब जाने पर
चाँद सूरज को रौशनी उधार देकर
उजियारा कर रहा हो
ऐसे ही तुम, तुम्हारी यादें
मुझे यादों की रौशनी के सहारे
जिला रही हैं
लेकिन चाँद चाहें जितनी कोशिश करे
वह रात को दिन तो नहीं कर
कर पायेगा
फिर मैं, मैं तो जीती ही हूँ
सिर्फ ..........
फिर तुम्हारी यादें मुझे कैसे .......
जब हम अपने हाथों
अपने आँसू मोल लेते हैं
तो हम ही दर्द का सौदा भी करते हैं
शायद इसीलिए दर्द और आँसू
हमें इतनी तकलीफ नहीं देते......
मुझे तुम्हारा महत्व पता ही नही चला
लेकिन अब जब तुम मेरे पास नही हो
तब लगता है कि
तुम तो मेरी सांसो से भी ज्यादा
जरूरी हो मेरे लिए
जैसे सूरज के डूब जाने पर
चाँद सूरज को रौशनी उधार देकर
उजियारा कर रहा हो
ऐसे ही तुम, तुम्हारी यादें
मुझे यादों की रौशनी के सहारे
जिला रही हैं
लेकिन चाँद चाहें जितनी कोशिश करे
वह रात को दिन तो नहीं कर
कर पायेगा
फिर मैं, मैं तो जीती ही हूँ
सिर्फ ..........
फिर तुम्हारी यादें मुझे कैसे .......
जब हम अपने हाथों
अपने आँसू मोल लेते हैं
तो हम ही दर्द का सौदा भी करते हैं
शायद इसीलिए दर्द और आँसू
हमें इतनी तकलीफ नहीं देते......
बनावटी
मैं हँसतीं हूँ
दुख दर्द सभी में हंसती हूँ ,
लेकिन हंसते हंसते मेरी बनावट थक जाती है
खुशी थक जाती है,
ऐसे ही कभी कभी हमारी आँखें भी
रोते रोते थक जाती हैं
थक जाती है मेरी उदासी भी
और मैं इन सबसे दूसरी तरफ
मुंह घुमा लेती हूँ
उदासी की तरफ से पीठ कर लेती हूँ,
ताकि हंसी की छाँव में
खुशी के साथ कुछ पल
आराम कर सकूं
क्योंकि फिर मुझे कोई वापिस खड़ा कर देगा
फिर उसी आंसुओं की कड़ी धूप में
चलने के लिए.....
दुख दर्द सभी में हंसती हूँ ,
लेकिन हंसते हंसते मेरी बनावट थक जाती है
खुशी थक जाती है,
ऐसे ही कभी कभी हमारी आँखें भी
रोते रोते थक जाती हैं
थक जाती है मेरी उदासी भी
और मैं इन सबसे दूसरी तरफ
मुंह घुमा लेती हूँ
उदासी की तरफ से पीठ कर लेती हूँ,
ताकि हंसी की छाँव में
खुशी के साथ कुछ पल
आराम कर सकूं
क्योंकि फिर मुझे कोई वापिस खड़ा कर देगा
फिर उसी आंसुओं की कड़ी धूप में
चलने के लिए.....
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