रेत पर अगर महल बनाओगी
तो उसे हवा नहीं तो
कोई अपना
जिसे आप अपना सर्वस्व न्योछावर करती हो
जिसे आप अपने सबसे निकट मानती हो
वही
एक फूंक मारकर तुम्हारी जिंदगी का
रेतीला महल ढहा देगा,
तुम्हारे सामने तुम्हारा सब कुछ
उड़ जायेगा,हवा में
और रह जायेगा
सपाट रेतीली जमीन
और उस पर खड़ा हंसता हुआ
तुम्हारा प्रिय......
26/9/10
तो उसे हवा नहीं तो
कोई अपना
जिसे आप अपना सर्वस्व न्योछावर करती हो
जिसे आप अपने सबसे निकट मानती हो
वही
एक फूंक मारकर तुम्हारी जिंदगी का
रेतीला महल ढहा देगा,
तुम्हारे सामने तुम्हारा सब कुछ
उड़ जायेगा,हवा में
और रह जायेगा
सपाट रेतीली जमीन
और उस पर खड़ा हंसता हुआ
तुम्हारा प्रिय......
26/9/10
Bahut badiya!!! Par tumne kabhi socha hai Hawa ki mahal mei bhi log sapne sajaate hai, par woh toot te nahi.... bas ek meethi si chubhan de jaati hai !
ReplyDeleteशुक्रिया बब्बल,मेरी सोच में अपनी विचार मिलाकर एक नया दोस्त आपके अपने रूप में देने का....
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