जब अपना घर नही होता,तब
तब,कोई दूसरा घर नजर नही आता
दो पल बिताने को,
कोई अपना नजर नही आता
कोई राह नजर नही आती
कोई दिशा मेरा मार्ग दर्शन नही करती
आँखे भी अँधेरे के सिवा कुछ नही दिखाती
एक आँसू मेरा साथ कभी नही छोड़ते
इतने आंसुओं को विदा करके भी
आँखों में नमी हमेशा रहती है,
कहाँ जाऊँ,किस राह जाऊँ
नही समझ पा रही
सिवाय सूने आसमा के
कुछ नजर नही आता,
बार बार मरने से क्या एक बार मरना
सही नही है,भगवन..फिर क्यों ......
तब,कोई दूसरा घर नजर नही आता
दो पल बिताने को,
कोई अपना नजर नही आता
कोई राह नजर नही आती
कोई दिशा मेरा मार्ग दर्शन नही करती
आँखे भी अँधेरे के सिवा कुछ नही दिखाती
एक आँसू मेरा साथ कभी नही छोड़ते
इतने आंसुओं को विदा करके भी
आँखों में नमी हमेशा रहती है,
कहाँ जाऊँ,किस राह जाऊँ
नही समझ पा रही
सिवाय सूने आसमा के
कुछ नजर नही आता,
बार बार मरने से क्या एक बार मरना
सही नही है,भगवन..फिर क्यों ......
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