इक इक खुशी के लिए मैं
तुम्हारी मोहताज हो गई हूँ
तुम्हारा नाम किसी से सुनकर
क्यों बेकाबू सी हो गई हूँ,
क्यों तुम्हारी बातें सुनकर
दिल पर वश नहीं रख पाती हूँ,
सोचती तो बहुत हूँ कि तुझे याद ना करूं,
लेकिन तुम्हे देखते ही
सूखे पत्ते की तरह से
तुम्हारी और बदती जाती हूँ ..
तुम्हारी एक झलक पाने को
बेताब हुई जाती हूँ....
तुम क्या हो मेरे
जो मैं मीरा हुई जाती हूँ...........
तुम्हारी मोहताज हो गई हूँ
तुम्हारा नाम किसी से सुनकर
क्यों बेकाबू सी हो गई हूँ,
क्यों तुम्हारी बातें सुनकर
दिल पर वश नहीं रख पाती हूँ,
सोचती तो बहुत हूँ कि तुझे याद ना करूं,
लेकिन तुम्हे देखते ही
सूखे पत्ते की तरह से
तुम्हारी और बदती जाती हूँ ..
तुम्हारी एक झलक पाने को
बेताब हुई जाती हूँ....
तुम क्या हो मेरे
जो मैं मीरा हुई जाती हूँ...........
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