कैसा मन है,जो कभी किसी एक बात पर टिकता ही नहीं है.
पहले बड़े ना करने पर भगवान से लड़ती थी,और अब
अब वो अल्हड़पन वापिस लाने को
दिल चाहता है,
चाहती हूँ शाम को जब सूरज छिपने लगे
तो मैं उसका पीछा करूं,
उस लाल लाल छिपते सूर्य को अपने
मस्तक पर बिंदिया की तरह सजा लूँ,
मैं जानती हूँ वो मेरे हाथ नहीं आएगा
फिर भी दूर तक उसका पीछा करूं,
ताली बजा बजा कर भागूं,
कूद कूद इठलाऊं,चंदा को चिड़ाऊं,
ये सब करके जब थक जाऊं ,
तो माँ की गोद में छिप कर
परियों संग बतियाऊं..
पता नहीं क्यों,पर मन करता है.......
पहले बड़े ना करने पर भगवान से लड़ती थी,और अब
अब वो अल्हड़पन वापिस लाने को
दिल चाहता है,
चाहती हूँ शाम को जब सूरज छिपने लगे
तो मैं उसका पीछा करूं,
उस लाल लाल छिपते सूर्य को अपने
मस्तक पर बिंदिया की तरह सजा लूँ,
मैं जानती हूँ वो मेरे हाथ नहीं आएगा
फिर भी दूर तक उसका पीछा करूं,
ताली बजा बजा कर भागूं,
कूद कूद इठलाऊं,चंदा को चिड़ाऊं,
ये सब करके जब थक जाऊं ,
तो माँ की गोद में छिप कर
परियों संग बतियाऊं..
पता नहीं क्यों,पर मन करता है.......
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