मैंने उनसे पूछा
आज तुम मुझे धुंधले क्यों दिखाई देते हो,
वो पास आये और
मेरी आँखों को लगभग निचोड़ते हुए बोले
लो,अब साफ दिखाई दूँगा.
तो क्या प्रिये,
तुम मेरे मन में नहीं रहते
आँख गीली थीं भी तो क्या
मुझे तुम मन की आँखों से भी धुंधले ही
क्यों दीख पड़ते हो
क्या मेरा तन,मन
मेरा वर्चस्व ही रोया हुआ है,
मेरी पलकों के संग मेरा
सर्वस्व ही भीगा पड़ा है.......
आज तुम मुझे धुंधले क्यों दिखाई देते हो,
वो पास आये और
मेरी आँखों को लगभग निचोड़ते हुए बोले
लो,अब साफ दिखाई दूँगा.
तो क्या प्रिये,
तुम मेरे मन में नहीं रहते
आँख गीली थीं भी तो क्या
मुझे तुम मन की आँखों से भी धुंधले ही
क्यों दीख पड़ते हो
क्या मेरा तन,मन
मेरा वर्चस्व ही रोया हुआ है,
मेरी पलकों के संग मेरा
सर्वस्व ही भीगा पड़ा है.......
No comments:
Post a Comment