About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Thursday, September 15, 2011

मूर्त अमूर्त

शरीर और मन क्या होता है
     क्या सच मे शरीर ही शरीर की अंतिम राह है,
क्या इस देह में मन जैसी कोई
     चीज़ होती है,
और अगर होती है तो
     उसका उपयोग भी शरीर ही करता है.
क्या मन हमेशा तन का गुलाम ही रहेगा.
            नहीं,
शायद एक मूर्त है,दूसरा अमूर्त
     कौन किसको कब पछाडेगा
यह सिर्फ भावनाओं पर केंद्रित है
              मन सिर्फ स्वार्थ  के अस्तित्व को नहीं मानता,
लेकिन हालात,
        हालात मन को स्वार्थ के अलावा
कुछ नहीं देते......

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