याद आती है सुबह की चाय
रजाई में दुबकी मैं
मेरे हाथ में चाय
और सामने तुम ठण्ड में सिकुड़ी
अपने ही पल्लू में सिमटी
याद आती हो माँ
याद आती है माँ ,दुपहर की रोटी
गरम गरम कुरकुरी घी वाली
और मन्नते करके खिलाती तुम
याद आती हो माँ
याद आते हैं शाम के गरम पकोडे
बैठे बैठे बोलना ---मम्मा अबकी ब्रेड के नहीं गोभी के
याद आते हैं माँ
याद आते हैं वो रात के फुल्के
अब नहीं बस और तुम्हारा कहना
बेटा बस एक और खाले
और रात की कॉफी
वो हम दोनों की खुसुर फुसुर बातों के साथ
कॉफ़ी का सिप, याद आता है माँ
अब कोई नहीं है माँ
सुबह से लेके रात तक
कहने वाला
तू ने कुछ खाया या नहीं ---ना ही है कोई मनाने वाला ........
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