याद आते हैं वो बचपन के दिन
वो घरोंदों की शामे
वो संज्ञा की चिंता
वो जल्द बड़े होने की लालसा
वो शाम होने पर
किसी मिटटी के टीले पर बैठकर
ढलते सूरज को निहारना
वो इंतज़ार करना कल का
क्योंकि हर दिन ढलने पर
माँ का कहना,सारा खाना खा ले,
कल का सूरज मेरे चंदा को
बड़ा कर देगा.
वो कल का सूरज,मुझे बड़ा कर जायेगा
दिन-ब-दिन बड़ा
फिर आज का सूरज मुझे रुलाता क्यों है,
क्यों मुझे अपने को नहीं निहारने देता,
क्यों मुझे बीते दिन याद कराता है......
वो घरोंदों की शामे
वो संज्ञा की चिंता
वो जल्द बड़े होने की लालसा
वो शाम होने पर
किसी मिटटी के टीले पर बैठकर
ढलते सूरज को निहारना
वो इंतज़ार करना कल का
क्योंकि हर दिन ढलने पर
माँ का कहना,सारा खाना खा ले,
कल का सूरज मेरे चंदा को
बड़ा कर देगा.
वो कल का सूरज,मुझे बड़ा कर जायेगा
दिन-ब-दिन बड़ा
फिर आज का सूरज मुझे रुलाता क्यों है,
क्यों मुझे अपने को नहीं निहारने देता,
क्यों मुझे बीते दिन याद कराता है......
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