About Me

New Delhi, DELHI, India
अपने बारे में क्या कहूँ, एक अनसुलझी पहेली सी हूँ.कभी भीड़ में अकेलापन महसूस करती हूँ! तो कभी तन्हाइयों में भरी महफिल महसूस करती हूँ! कभी रोते रोते हँसती हूँ, तो कभी हंसते हंसते रो पडती हूँ. मैं खुश होती हूँ तो लगता है,सारी दुनिया खुश है,और जब दुखी होती हूँ तो सारी कायनात रोती दिखती है! क्या हूँ मैं, नहीं जानती,बस ऐसी ही हूँ मैं, एक भूलभुलैया.......

Saturday, December 10, 2011

old

नया  शहर,नया घर, नया वातावरण 
केवल और केवल मैं और मेरे विचार 
ही पुराने है इस नए घर में
            june 11





अविश्वास आदमी की आदतों को 
                  जितना  बिगाड़ता है
विशवास आदमी को उतना ही 
        खरा बनाता है......
          30/12/11

Tuesday, November 22, 2011

स्टाम्प

मेरी क्या हैसियत है इस घर में,
      हर वक्त की दुत्कार 
हर वक्त की कोंच कौंच 
       कभी इसका काम 
कभी उसका काम 
     फिर भी मैं कुछ भी नहीं 
मेरी जिन्दगी,एक स्टाम्प बन कर 
       रह गई है
खाली एक स्टाम्प 
      जिसका जो दिल चाहे 
मुझ पर स्टाम्प लगा दे 
     ये मेरी बीबी है स्टाम्प 
ये मेरी माँ है स्टाम्प 
    ये मेरी बहन  है स्टाम्प 
भाभी,बेटी ,बहु --------
      स्टाम्प-----स्टाम्प---- स्टाम्प 
और मेरी नजर में 
   मैं सिर्फ  एक 
रबड़ के नीचे लिखे एक 
  पेन्सिल के अक्षर की तरह हूँ 
अगर सही लगे तो ठीक 
   वरना रबड़ तो है ही 
              मिटा दो.......

Monday, November 21, 2011

अजनबी

दी,
    ऐसा भी होता है क्या,दी.
कैसा?
    कि कोई दो जन जितना भी
अधिक समय साथ गुजारें
          एक हवा में साँस लें
उतना ही ज्यादा
   उतना ही ज्यादा क्या?
उतना ही ज्यादा
      एक दूसरे से अजनबी हो रहें
क्या तुम सचमुच
    ऐसा महसूस करती हो छुटकी
हैं,हाँ शायद
    या शायद नहीं,
शायद पता नहीं .....

मकान

मेरे मकान का एक कमरा
    जिसमे बड़ा गोल सोफा,पेंटिंग्स,किताबें
अलमारी,गुलदस्ते,बुत,और भी ना जाने क्या क्या
    देख्नते ही कोई भव्य रूम सा लगता था,
आज भी कोई धूल झाड़कर देखे तो कहेगा जरुर,
एक दिन यह बहुत ही खूबसूरत रहा होगा
     पर सालों की आर्थिक तंगी ने
कठिनाइयों से भरी जिंदगी ने
हमारे मन के साथ साथ
सारे सामान में भी धूल जमा दी.
      परिवार का हर सदस्य
एक दूसरे से कटा कटा,खिंचा खिचा सा है.
 घर की हवा तक खींची खिची सी है
      उस हवा में भी गंध है
आपसी उब की,कडवाहट की
   ऊब,घुटन,आक्रोश,तनाव,तंगहाली
दम घुटा देने वाली मनहूसियत
   जो श्मशान में होती है
वही इस धूलधूसरित आलिशान रहे
     इस मकान में फेली है
इसको घर नहीं कहा जा सकता
ये तो एक मकान ही है.....

Tuesday, November 1, 2011

नजर

इस डर से कि कहीं किसी की
         नजर ना लग जाए
मैंअपनी खुशी को
       अंदर कोने कहीं सहेजती रही
मुझे पता ही नहीं चला
    वो कब मुझसे कोसों दूर चली गई
और मैं गम की पनाह में
       जीती रही
इसी उम्मीद में कि
          कहीं किसी कोने में मैने
अपनी खुशियों को सहेज
     कर रक्खा हुआ है.

Saturday, October 22, 2011

नरम

हवा के झोंकों की तरह इक फूल
       आके गिरा मुझ कंटीली झाडी में
खुद छलनी होके चला गया
       मुझे नरमी  देके




इतना दर्द समा चुका है मेरे भीतर
  कि साँस भी लेती हूँ
तो हिल्की बंध जाती है.

Wednesday, October 19, 2011

हम

......
    तुम्हारा साथ मुझे हमेशा एक
बरसाती की तरह लगता है
        लगता है तेज बारिश भी मुझे
भिगो ना पायेगी,और
        तेज हवा मेरा रास्ता
न रोक सकेगी
     तुमने मेरी छोटी से छोटी बात भी
दशरथ के वचन सी मानी
        शायद तुम्हे नही मालूम
एक लड़की अपनी बात को
         जिन्दा रखने के लिए ही
खुद की परवाह किए बिना
     अपने में से दूसरे अंश को
जन्म देती है,
           तुम्हारे साथ रहकर ही
मुझमे सीता का सा रूप आता है
         मन करता है तुम्हारे एहसासों की
सांसों का हिस्सा बन जाऊँ
     बस मेरा ये अहसास  बनाये रखना
तुम+मैं =हम
    

Thursday, October 13, 2011

तेरा जाना

तुम्हारे जाने के बाद 
    महसूस हुआ ये कि 
           मेरी जिंदगी की एक  
दीवार ढह गई है 
        मेरे जीवन को मरुस्थल 
बनाने के लिए 
     तुम्हारा जाना ही काफी था  

दाम

आँसू तो रुकने का नाम नहीं  लेते 
       और तुम मुझे हंसने का मौका नही देते 
इतने कठोर तुम क्यों हो गए 
    कि मुझे बर्बाद करके भी अपने 
सर इलज़ाम नही लेते 
    वैसे तो हर चीज़ के तुम दाम लगा लेते हो 
मगर मेरे जख्मों के 
    कोई दाम नही देते 
जब से आई हूँ तेरी जिंदगी में 
             तूने आँसू दिए हंसी ले ली 
रिश्ता ऐसा है कि
     तुझे छोड़ के जा भी नही सकती
शायद अब तो कब्र में ही आराम मिले  
              उसका भी दाम चूकाऊँगी मैं,
तुम मुझे कफन दे देना
      मैं तुम्हारा नकाब वापिस कर दूंगी 
जो तुम्हे मेरे साथ अपने दोस्तों 
      को दिखाने के लिये ओदना  पड़ता था 
मेरे जाने के बाद 
     तुम्हे दो रूप नही जीने पडेगें .....



Wednesday, October 12, 2011

खुश्क आँसू

तुम क्या देख रही हो 
     मेरी सूनी आँखों में चमक 
मेरे उतरे हुए चेहरे पे बनावटी मुस्कान 
    मेरी  आँखों की झूठी चमक 
तेरे सामने मेरा हाल बयां कर रही है 
    मेरे ना चाहते हुए भी 
मेरी खुश्क आँखे 
   सब कुछ बयां कर गईं 
क्योंकि तू मुझे इतना चाहती है 
   कि मेरी खुश्क आँखों की नमी 
तेरी आँखों में दिख रही है  
    फिर क्यों मुझे छोड़ कर जा रही हो 
तू ना जा मेरे ........
       तू ना जा 
पता नही अब बिछुड़ने के बाद 
   फिर तू मुझसे मिल भी पाए या .......

Sunday, October 2, 2011

तब और अब

जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही है,
     सपनों के आकार घटते जा रहे हैं 
अब सपने भी सपने जैसे नहीं रहे 
  उसमे भी एक डर समा गया है.
क्या ज्यादा सपने टूटने के कारण 
           ऐसा होता है,
कोई मुझे इसका जवाब देगा.
   

Sunday, September 25, 2011

अकेले में

कोई जरूरी नही है
     कि तुम सारे समय मुस्कुराती रहो
ये झूठ तुम्हे कहीं
      अंदर तक ना तोड़ दे,
इसलिए
      जब भी तन्हा हो
फूट फूट कर रो लो,किसी कांधे का इंतज़ार ना करो,
         दिखावा करते करते एक दिन तू मर जायेगी
मैं मानती हूँ
    जिंदगी में जीना जरूरी नहीं है
इस जहां में
जिंदगी में कैसे जी रहे हो
    जिंदगी का दिखावा करना जरूरी है.
दिल चाहे रो रहा हो
पर हंसके दिखाना जरूरी है.
     पर तू दिखावा करते करते मर जायेगी
इसलिए तन्हाइयों में ही रो ले........

दूर

किसी से दूर जाने के बाद
        महसूस होता है कि वो
हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण था
        हमे उससे कितना स्नेह,कितना प्यार था
वो हमारे लिए क्या था
   ये उसके दूर जाने के बाद ही पता चलता है.
अभाव में ही व्यक्ति का बोध होता है,
शायद इसीलिए
      अनुपस्थिति ज्यादा महत्वपूर्ण होती है
इक उम्र में रिश्ते ज्यादा
        जीवंत होते हैं.
वैसे भी हम तन से दूर हैं
     मन से नहीं मेरे सहचर .....
  

मीत

गली के खात्मे पर
     दो रास्ते बंटते हुए
बंटते हुए रास्ते में
   दो हाथ मिल रहे थे
खुशनुमां मौसम मेहरबां हुआ पड़ा था
आज तो आसमां भी मेरा
     सिरमौर बन रहा था
बस प्रेम ही टपक रहा था
       बारिश नहीं थी ये
चंदा भी खिल उठा था
        तारे भी मिल चुके थे
वो समा मेरे अतीत का था
       अतीत में हम दोनों चल रहे थे,
इक राह के दौराहे पर
    दो मीत मिल रहे थे....

Saturday, September 24, 2011

टूटा आईना

आज मैंने अपने आइने के
           टुकड़े टुकड़े कर दिए
मैंने उसे तोड़ दिया,
     टूट के बिखर जाने दिया.
फिर उसमे घंटों खड़े रहकर
 खुद को देखा,देखती रही,
फिर कहा 
          अब सही है,यही सच्चाई है,
जब मैं टूट के बिखर चुकी हूँ,
    तो मुझे ये आईना मेरी सही
तस्वीर क्यों नही दिखाता;
       अब ये आईना झूठा नही है,
क्योंकि अब मैं इसमें
      कई हिस्सों में बंटी,
टुकड़ों में दिखलाई पडती हूँ.
     ये आईना अपने मायने जान चुका है.......
                                 

मैंने उनसे पूछा

मैंने उनसे पूछा
    आज तुम मुझे धुंधले क्यों दिखाई देते हो,
वो पास आये और
      मेरी आँखों को लगभग निचोड़ते हुए बोले
लो,अब साफ दिखाई दूँगा.
           तो क्या प्रिये,
तुम मेरे मन में नहीं रहते
       आँख गीली थीं भी तो क्या
मुझे तुम मन की आँखों से भी धुंधले ही
      क्यों दीख पड़ते हो
क्या मेरा तन,मन
      मेरा वर्चस्व ही रोया हुआ है,
मेरी पलकों के संग मेरा
      सर्वस्व ही भीगा पड़ा है.......

पहला स्पर्श

मैं उससे कभी मिली तो नहीं थी,
        लेकिन फोन पर उसका यह संवादी स्पर्श था 
यह एक विरल संवाद था 
   जिसका हर शब्द छुअन भरा था 
इन्हीं खिड़कियों को खोल खोल कर 
         हम एक दूसरे को झांक रहे थे
उसकी बातों का स्पर्श 
         मुझे पुलकित कर रहा था.
मेरा सारा शरीर झनझना रहा था,
           वो कैसा था नही जानती,लेकिन 
उसकी वाणी की सुंदरता मेरे कानों में ही नहीं 
             मेरे दिल में समा रही थी ,
और मेरी आवाज़ का पुलकित होना 
        उसे भी महसूस हो रहा था,
 ये ही थी हमारी 
      पहली संवादी छुअन ....

Thursday, September 22, 2011

मेरा अपना

जब अपना घर नही होता,तब
      तब,कोई दूसरा घर नजर नही आता
दो पल बिताने को,
          कोई अपना नजर नही आता
कोई राह नजर नही आती
        कोई दिशा मेरा मार्ग दर्शन नही करती
आँखे भी अँधेरे के सिवा कुछ नही दिखाती
      एक आँसू मेरा साथ कभी नही छोड़ते
इतने आंसुओं को विदा करके भी
        आँखों में नमी हमेशा रहती है,
कहाँ जाऊँ,किस राह जाऊँ
   नही समझ पा रही
सिवाय सूने आसमा के
        कुछ नजर नही आता,
बार बार मरने से क्या एक बार मरना
    सही नही है,भगवन..फिर क्यों ......

चेहरा

बहुत समय के बाद आइने के सामने आई तो
आइने के सामने खड़ी
     देख रही हूँ
एक कांतिहीन-मुर्झाई सी एक आकृति
      वो अजीब सी धुंधली सी मूरत
बेतरतीब से कपड़े,उलझे से बाल
     जो शायद अपनी पहचान तक खो बैठे हैं
कोई जानी-पहचानी सी
     तस्वीर सा खड़ा है कोई,मूरत बनके
पर,कौन है,पहचान नही पा रही हूँ
      वैसे तो आइने में खुद की ही झलक दिखती है,
फिर ये मेरी जगह कौन है,क्या ये मैं हूँ?
                   नही,ये मैं तो हो ही नही सकती,
मैं तो सर्दी की गुनगुनी धूप सी हूँ,
          गर्मी की छाँव हूँ,हरदम मुस्काती माँ की परी हूँ.
और जो सामने आइने में है,
    वो तो कोई पतझड का रूप लिए है,
बिना फूल का ठूँठ सा पेड़ है जिसमे
 हरियाली का नामोनिशान तक नही,
                 ये कौन मेरे आइने में है जो मुझे
मेरी ही सूरत नही देखने दे रही.....

बचपन

माँ तेरी याद आती हैं 
याद आती है सुबह की चाय 
रजाई में दुबकी मैं 
मेरे हाथ में चाय 
और सामने तुम ठण्ड में सिकुड़ी 
अपने ही पल्लू में सिमटी 
याद आती हो माँ  
याद आती है माँ ,दुपहर की रोटी
गरम गरम कुरकुरी घी वाली 
और मन्नते करके खिलाती तुम 
याद आती हो माँ
याद आते हैं शाम के गरम पकोडे 
बैठे बैठे बोलना ---मम्मा अबकी ब्रेड के नहीं गोभी के 
याद आते हैं माँ 
याद आते हैं  वो रात के फुल्के 
अब नहीं बस और तुम्हारा कहना 
बेटा बस एक और खाले 
और रात की कॉफी 
वो हम दोनों की खुसुर फुसुर बातों के साथ 
कॉफ़ी का सिप, याद आता है माँ 
अब कोई नहीं है माँ 
सुबह से लेके रात तक 
कहने वाला 
तू ने कुछ खाया या नहीं ---ना ही है कोई  मनाने वाला ........


Sunday, September 18, 2011

मुस्कान

सुहाना मौसम और
    सहलाती शाम की हवा में
मुस्कुराते सूरज को विदा बोलना
      और उसी समय
हिचकी का आकर
    तेरी याद दिलाना
प्यार के उस पार
    सिर्फ धूप ही नहीं
बारिश भी है.
         उसी बारिश में नहा के
खाली पांव तेरी तरफ दौड़ना
        आज भी याद आता है तो
इस उदास चेहरे पर
मुस्कान छोड़ जाता है....

तेरा प्यार

आज की रात
    बहुत इंतज़ार के बाद आई है
आज मैं चंद्रमा की
         सफ़ेद चादर ओढ़े हूँ
आज की रात मेरी
             आँखों में बस आई है
सुबह तो सूर्य की भी
         आँखे लाल लाल थीं
वो भी मेरे जाने पर
    इतना दुःखदाई था
तारे मेंरे माथे पे  मरवट लगाएं हैं
         चाँद मेरे माथे पे बिंदिया सा चमक गया
अब तो बस तेरे आग
       लगाने की बारी आई है,
राख हो जाउंगी तो शायद
     हवा में उडकर ही सही
तेरे सीने से लिपट जाउंगी
    तेरे सीने में सर रखने की
 कसम खाई है
आज की रात .........
         

औरत

तू कौन है, तू क्या है,
     कभी शीशे में शक्ल देखी है,
पढ़ी-लिखी भी हो जरा सी
  अपनी आवाज़ सुनी है,जेसे फंटा बांस
        अरे,तुम्हे तो चलना भी नहीं आता
लाइफ में कुछ कर सकती हो,
है कौन तू
            मैं ,मैं वही हूँ,
जिसके लिए तुमने अपनी नस काट ली थी
        मैं वही हूँ जिसमे तुम्हे रति नज़र आती थी
मेरी शक्ल में राधा की छवि दिखती थी
मुझे देखने को घंटों मेरे घर के बाहेर खड़े रहते थे 
मेरी आवाज़ में तुम्हे मंदिर  के घंटे  सुनाई पड़ते थे ,
मेरी चाल मोरनी और मेरी आँखे हिरन की सी लगती थी,
मैं वही हूँ,वही हूँ मैं .
       पहले लड़की थी किसी दूसरे की, और अब ,
अब एक औरत हूँ ,
जो गलती से तुम्हारी बीबी कहलाती है...

तुम ना रोना

तुम्हे मेरी कसम है
   मेरे मरने पर तुम ना रोना
मुझे डर है कि कहीं
तुम्हारे आंसुओं में भीग कर
     मैं जल ही ना पाऊं
और जबतक मैं खाक नहीं होउंगी 
    तो मुझे गंगा में कैसे बहाओगे
वहीँ तो हमारा मिलन होगा
     जब मैं गंगा में बहूँगी और
तुम्हारी चमक मेरे अंग अंग को
       स्पर्श करेगी,
तो प्रिये,तुम्हे चमकना है,
   हमारे मिलन के लिए,
तुम ना रोना ..तुम ना रोना ......

बड़ा

याद आते हैं वो बचपन के दिन
   वो घरोंदों की शामे
वो संज्ञा की चिंता
   वो जल्द बड़े होने की लालसा
वो शाम होने पर
   किसी मिटटी के टीले पर बैठकर
ढलते सूरज को निहारना
    वो इंतज़ार करना कल का
क्योंकि हर दिन ढलने पर
    माँ का कहना,सारा खाना खा ले,
कल का सूरज मेरे चंदा को
     बड़ा कर देगा.
वो कल का सूरज,मुझे बड़ा कर जायेगा
दिन-ब-दिन बड़ा
      फिर आज का सूरज मुझे रुलाता क्यों है,
क्यों मुझे अपने को नहीं निहारने देता,
    क्यों मुझे बीते दिन याद कराता है......

हमसफर


जो मेरे पास 15 मिनट बैठकर प्यार की 
      बातें नहीं कर सकता,
जिसमें मुझे समझने की जरा भी 
         समझ ही नहीं थी 
उसी के साथ मुझे 
        जिंदंगी जीने को उम्रभर के लिए 
बांध दिया, 
   जिसे  मेरे प्यार का हमसफर बनाया 
     वो तो इतने सालों बाद भी 
मेरे लिए अजनबी ही है.
     ये तो बता जिंदगी
अभी कितने इम्तिहान और लेगी,
     अब तो अपना हाथ रोक ले...

Friday, September 16, 2011

परिचय

आ बैठ
       आज मैं तुझसे तेरा परिचय करवाऊं,
तू है मेरे आँचल की खुशबू
      तुझको मैं सहला दूँ,
तेरे लम्बे बालों में मैं गजरा एक लगा दूँ
      चाँद तारे तेरे माथे पर
बिंदिया से सजा दूँ,
          दुनियां की तो बात ही क्या
तू तो परियों को भी लजा दे,
    आ बैठ ,आज तुझसे मैं
तेरा परिचय करवा दूँ
      तू है इस दुनियां की जननी
तुझ सा दम यहाँ कौन भरे
         तू तो है एक सृष्टि रचयिता
तुझसे कौन दंभ भरे 
         तू है इस दुनियां को सिर्फ देने वाली
तू क्यों तानो से डरे
        तू मरों में प्राण डाल दे
अपने जीने से क्यूँ डरे ,
   तुझे कोई क्या दे सकता है ,
तू खुद सबकी झोली भरे,
      आ बैठ ,आज तुझसे मैं तेरा परिचय करा दूँ,
तू तो है खुदा के बराबर
    तू फिर क्यों लजाती है,
सबको खाना  देने वाली
     अन्नपूर्णा कहलाती है,
सबके दुःख बाँटने वाली
     तू क्यों दुख्यारी कहलाये.......  
आ बैठ ..........



वापसी

मुझसे हाथ छुड़ाने वाले,
           क्या तुम मुझे मेरे,बीते दिन भी वापिस दे पाओगे,
क्या तुम मुझे ,मेरी वही पहले वाली हंसी,
     लौटा सकोगे,
        वही अल्हडपन,वही मस्ती,वही जोश
भर सकोगे,
     जो कहीं तुम्हारे लिए मैने दिन रात 
बंद कमरे में,धुंए भरी रसोई में,
     पीड़ा भरी रातों में 
दिन रात तकिये भिगोते हुए 
     तुम्हारे हरदम के ताने सुन सुन कर 
कहीं गुमां दिए हैं,
    क्या मुझे वापिस भेजते हुए 
ये सब भी वापिस कर पाओगे
           क्या मेरा योवन जो पता नही 
कब मुझसे छिन गया,
    तुम वो मुझे दोगे 
मेरी रूह जो इतने बरसों तडप तड़पकर 
 कहीं दफन हो गई है,उसे जिन्दा कर पाओगे...

Thursday, September 15, 2011

मूर्त अमूर्त

शरीर और मन क्या होता है
     क्या सच मे शरीर ही शरीर की अंतिम राह है,
क्या इस देह में मन जैसी कोई
     चीज़ होती है,
और अगर होती है तो
     उसका उपयोग भी शरीर ही करता है.
क्या मन हमेशा तन का गुलाम ही रहेगा.
            नहीं,
शायद एक मूर्त है,दूसरा अमूर्त
     कौन किसको कब पछाडेगा
यह सिर्फ भावनाओं पर केंद्रित है
              मन सिर्फ स्वार्थ  के अस्तित्व को नहीं मानता,
लेकिन हालात,
        हालात मन को स्वार्थ के अलावा
कुछ नहीं देते......

मेरे बाद

एक मेरे गुजर जाने से 
      तुम्हारे मन की बंजर हो गई 
दिल की जमीं में 
     इतनी खुदाई हुई कि
तुम्हे प्रेम का अर्थ समझ आ गया    
       तुमने मुझे प्यार, समर्पण,प्रतिबध्द्ता 
का प्रतिरूप तो माना,लेकिन  
       मेरी मौत के बाद.
अब तुम्हे ख्वाबों में मैं लगती हूँ 
          प्यार की बेपनाह तस्वीर,जो तुम्हे 
सहलाती,पुकारती,अपने जीवन की
     बांसुरी की तरह
अब तुम घर बसना चाहते हो,मेरे साथ
             लेकिन मेरी मौत के बाद.
अगर तुम ये सब पहले ही समझ जाते तो
    शायद मुझे मौत को गले ना लगाना पडता...


.

मेरा अतीत

मुझसे पीछा छुड़ाने वाले
    क्या तुम मुझे मेरे,बीते दिन भी वापिस दे सकोगे
क्या तुम मुझे,
           मेरी वही हंसी,वही अल्हडपन,वही मस्ती,
वापस दे पाओगे,
वही पुराना जोश भर पाओगे
         जो कहीं तुमने बंद कमरे में
धुएंभरी रसोई में,
          पीड़ा भरी रातों में,
दिन के तानो में
       कहीं गुमाँ दिए हैं,
क्या वो सब वापिस कर पाओगे
क्या मेरा वही सोंदर्य,मेरा वही यौवन
           दे पाओगे मुझे
मेरी रूह जो इतने बरसों
   तडप तड़पकर मर चुकी है,
क्या उसे जिन्दा कर पाओगे ,
       नहीं तुम कुछ नहीं कर पाओगे
सिवाय एक और जिंदगी बर्बाद करने के


Monday, September 12, 2011

रेत का महल

रेत पर अगर महल बनाओगी 
     तो उसे हवा नहीं तो 
कोई अपना 
      जिसे आप अपना सर्वस्व न्योछावर करती हो 
जिसे आप अपने सबसे निकट मानती हो 
      वही 
एक फूंक मारकर तुम्हारी जिंदगी का 
    रेतीला महल ढहा देगा,
तुम्हारे सामने तुम्हारा सब कुछ 
       उड़ जायेगा,हवा में 
और रह जायेगा 
   सपाट रेतीली जमीन 
और उस पर खड़ा हंसता हुआ 
   तुम्हारा प्रिय......


               26/9/10

Sunday, September 11, 2011

बचपन

कैसा मन है,जो कभी किसी एक बात पर टिकता ही नहीं है.
    पहले बड़े ना करने पर भगवान से लड़ती थी,और अब
अब वो  अल्हड़पन वापिस लाने को
      दिल चाहता है,
चाहती हूँ शाम को जब सूरज छिपने लगे
   तो मैं उसका पीछा करूं,
उस लाल लाल छिपते सूर्य को अपने
     मस्तक पर बिंदिया की तरह सजा लूँ,
मैं जानती हूँ वो मेरे हाथ नहीं आएगा 
    फिर भी दूर तक उसका पीछा करूं,
ताली बजा बजा कर भागूं,
कूद कूद इठलाऊं,चंदा को चिड़ाऊं,
  ये   सब करके जब थक जाऊं ,
तो माँ की गोद में छिप कर
     परियों संग बतियाऊं..
पता नहीं क्यों,पर मन करता है.......

वक्त

तूने मुझे अपनाया तो सही
लेकिन तब,
      जब मेरी सांसे तुमसे मिलकर
डूबी डूबी सी ना हुई,
      मेरी आँखे सुर्ख होके झुकी नही
मेरा अंग अंग फडका नहीं
     क्योंकि
जब तक तुम्हें मेरे प्यार का अहसास हुआ
   तब तक
मेरा अहसास, मेरी साँस
    मेरी धड़कन
सब मुझसे विदा ले चुके थे
  रह गया था तो सिर्फ
खुली आँखों का इंतज़ार और
 लाल साड़ीमें लिपटा मेरा बदन....... 

Saturday, September 10, 2011

दर्द

मेरा और दर्द का रिश्ता
ऐसा है जैसा
    चाय में देर तक डूबा बिस्कुट
जिसमें आप चम्मच घुमा दो तो
    मालूम ही ना पड़े कि
कौन किसमे घुल गया
   जब तक आप पियेंगे नहीं
देखोगे तो सिर्फ चाय नजर आएगी
    लेकिन जब पियोगे तो ........

तुम क्या हो

इक इक खुशी के लिए मैं
      तुम्हारी मोहताज हो गई हूँ
तुम्हारा नाम किसी से सुनकर
     क्यों बेकाबू सी हो गई हूँ,
क्यों तुम्हारी बातें सुनकर 
    दिल पर वश नहीं रख पाती हूँ,
सोचती तो बहुत हूँ कि तुझे याद ना करूं,
     लेकिन तुम्हे देखते ही
सूखे पत्ते की तरह से
     तुम्हारी और बदती जाती हूँ ..
तुम्हारी एक झलक पाने को
      बेताब हुई जाती हूँ....
तुम क्या हो मेरे
    जो मैं मीरा हुई जाती हूँ...........





एक तू

तुमसे बिछड़ी तो ऐसी कि

      तुम्हारे बाद कोई हमराज़ ना मिला 
आँसू तो बहुत आए  
      लेकिन कोई कान्धा ना मिला 
धडकन तो बहुत बार बड़ी, लेकिन      
       अपनेपन क एहसास ना मिला 
दिल में बहुत प्यार भरा है लेकिन 
         जो प्यार का एहसास दिलाए वो इंसान ना मिला 
सांसे ले रही हूँ बस इसलिए 
         क्योंकि
मरने का ही कोई बहाना ना मिला .........................<३  
      

Friday, September 9, 2011

वक्त

तूने मुझे अपनाया तो सही
लेकिन तब,
      जब मेरी सांसे तुमसे मिलकर
डूबी डूबी सी ना हुई,
      मेरी आँखे सुर्ख होके झुकी नही
मेरा अंग अंग फडका नहीं
     क्योंकि
जब तक तुम्हें मेरे प्यार का अहसास हुआ
   तब तक
मेरा अहसास, मेरी साँस
    मेरी धड़कन
सब मुझसे विदा ले चुके थे
  रह गया था तो सिर्फ
खुली आँखों का इंतज़ार और
 लाल साड़ीमें लिपटा मेरा बदन.......